|
AHSEC 12 HINDI : BAJAR DARSHAN |
बाजार दर्शन
लेखक : जेनेन्द्र कुमार
लेखकर परिचय : हिन्दी में प्रेमचन्द्र के बाद सबसे महत्वपूर्ण कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित जेनेन्द्र कुमार का जन्म सन् १९०५ में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ। इनके पिता का नाम श्री प्यारेलाल और माता का नाम रामदेवी था। बचपन में ही पिताजी के लाड़-प्यार से वंचित इनका पालन इनकी माता तथा मामा ने किया। जैनेन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल ऋषि ब्रह्मचर्याश्रम में सानन्द्र सम्पन्न हुई थी। सन् १९२१ में हाईस्कूल परीक्षा उर्तीण की और उच्च शिक्षा के लिए काशी विश्वविद्यालय में दाखिला लिया परन्तु पढ़ाई पूरी न कर पाये। गाँधी जी के साथ असहयोग आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। कई बार इन्हें जेल भी जाना पड़ा। जेल जीवन की अवधि के दौरान ही इनकी साहित्य सेवा और साधना तथा असाधारण साहित्यिक प्रतिभा से प्रेरित होकर आगरा विश्वविद्यालय और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्याल ने इन्हें डी० लिट् की उपाधि विभूषित किया। अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से उन्होंने हिन्दी में एक सशक्त मनोवैज्ञानिक कथा-धारा का प्रवर्तन किया। कथाकार होने के साथ-साथ, जैनेन्द्र की पहचान अत्यंत गंभीर चिंतक के रूप में रही। जैनेन्द्र को साहित्य अकादेमी पुरस्कार भारत-भारती सम्मान तथा भारत सरकार द्वारा 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया है। सन् १९९० ई० में इनका देहांत हुआ। जैनेन्द्र की प्रतिभा बहुमुखी थी। इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं उपन्यास :- परख, अनग्म, स्वामी, सुनिता, त्यागपत्र, कल्याणी, जयवर्द्धन, मुक्तिबोध कहानी-संग्रह : वातायन, एक रात, दो चिड़ियाँ, फासी, नीलम देश की राजकन्या, पाजेब । निबन्ध संग्रह प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच विचार, समय और हम नाटक: टकराहट।
संस्मरण: ये और वे।
साराशं
बाजार दर्शन जैनेन्द्र का एक महत्वपूर्ण निबन्ध है, जिसमें गहरी वैचारिकता और साय सुलभ लालित्य का दुलर्भ संयोग देखा जा सकता है। लेखक ने अपने परिचितों, मिसे जुड़े अनुभव बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि बाज़ार की जादुई ताकत कैसे हमें ब गुलाम बना लेती है। लेखक अपने मित्र के बारे में बताते हुए कहते हैं, एक बार प मामुली चीज लेने बाजार गये परन्तु लौटे तो बहुत सार चीजों के साथ पूछने पर की ओर संकेत करते हैं। लेखक कहते हैं आदिकाल से खरीदारी करने में पति की तु में पत्नी की प्रमुखता प्रमाणित है। क्योंकि स्त्री ही माया जोड़ती हैं। लेखक कहते न खरीदारी में और एक ताकत की महिमा सविशेष है, वह हे मनोबैग अर्थात पैसे की ग या एनर्जी पैसा पावर हैं, और उस पैसे से आस-पास माल-ढाल न जमा हो तो पावर का प्रयोग कैसा ? पैसे की इसी 'पर्चोजिंग पावर' के प्रयोग में ही पावर का म लेकिन कुछ लोग संयमी हैं, वे फिजूल में पैसा बहाते नहीं हैं बल्कि अपनी बुद्धि संयम से पैसा जोड़ते हैं। वे पैसे जोड़कर ही गर्वित होते रहते हैं। लेखक कहते हैं, उन मित्र ने जो ढेर सारी चीजो की खरीदारी की वह जरुरत की तरफ देखकर नहीं 'पर्चेजंग पावर' के अनुपात में आया है। इस सिलसिले में और एक ताकत का हैं, वह है बाजार। बाजार एक जाल हैं, जिससे कोई बेहया ही बच सकता है। बा हमेशा लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। वह लोगों को आमंत्रित करता है। लोगों में चाह जगाता है, चाह यानी अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर लोगों को ल हैं कि उसके पास काफी कुछ नहीं है। जो लोग अपने को नहीं जाने तो बाजार कामना से विकल बना देता है। इतना ही नहीं असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना सकता है। लेखक अपने एक और मित्र उदाहरण देते हुए कहते हैं, एक बार वह दोपहर को बाजार गये और शाम को लौटे भी खाली हाथ। पूछने पर बताया कि वह निर्णय नहीं कर पाये कि क्या ले क्योंकि लेने का मतलब हैं, बाकी सारी चीजें छोड़ देना। अगर हम अपनी आवश्यक्ताओं ठीक से समझकर बाजार न जाये तो उससे हम लाभ नहीं उठा सकेंगे। बाजार में जादू है। जिस प्रकार चुंबक का जादू लोहे पर चलता है, उसीप्रकार जेब भरी हो, ज मन खाली दो तो ऐसी हालत में जादू का असर खब हैं। तब हम समान जरुरी आराम को बढ़नेवाला मालूम होता है।
बाजार के इस जादू का जकड़ से बचने का लेखक ने एक उपाय बताया है। उन्होंने कहा हैं, कि बाजार जाते समय मन खाली नहीं होना चाहिए। जिस प्रकार लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए उसी प्रकार बाजार जाने से पूर्व अपनी आवश्यकता को ठीक से समझ लेना जरूरी हैं। तभी वह लाभ देगा। मन खाली न रहने का तात्पर्य यह नहीं मन बन्द हो क्योंकि जो बन्द हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का हैं। अगर कोई अपनी आँख इसलिए फोड़ ले कि वह लोभनीय के दर्शन से बच जाए तो क्या लोभ मिट जायेगा। यह गलत हैं, क्योंकि आँख बन्द करके ही मनुष्य | सपने देखता है। इसलिए मन को बन्द करने की कोशिश अच्छी नहीं हैं। मन कभी पूर्ण नहीं होता। सच्चा ज्ञान सदा इसी अपूर्णता के बोध को हम में गहरा करता है और सच्चा | कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। अतः कभी मन को नहीं रोकना | चाहिए क्योंकि वह अप्रयोजनीय रूप से हमें नहीं मिली। लेकिन उसे मनमाना घूट | नहीं मिलना चाहिए क्योंकि वह अखिल का अंग है, स्वयं कुल नहीं है। भी लेखक बताते हैं, कि उनके पड़ोस में भगत जी नाम के एक व्यक्ति रहते हैं, जो चूरन बेचते है। चूरन उनका बड़ा ही मशहूर था, परन्तु वह न तो थोक में बेचते और न ही | व्यापारियों को बेंचते। यहाँ तक कि छ: आने की बिक्री हो जाती तो बाकी चूरन लोगो में बाँट दिया करते थे। चाहते तो चूरन बेंचकर क्या कुछ नहीं कमा सकते थे, परन्तु नहीं। उनपर बाजार का जादू नहीं चल सकता। पैसा उससे आगे होकर भीख तक माँगता है कि मुझे लो परन्तु उसका मन अड़िग रहता। पैसे की व्यंग्य शक्ति सुनाते हुए लेखक कहते हैं, कि एक बार वे पैदल जा रहे थे तभी एक धूल उड़ाती हुई मोटर पास से गुजरी। तब लेखक को ऐसा लगा जैसे किसी ने व्यंग्य किया हो कि यह मोटर है, जिससे तुम इससे वंचित हो। लेकिन लोकवैभव की यह व्यंग्य-शक्ति उस चूरनवाले के समक्ष चूर-चूर होकर रह जाती। लेखक आश्चर्य में पड़ जाते हैं। वह सोचते है, कि वह क्या बल हैं, जो इस तीखे व्यंग्य के आगे अजेय ही नही बल्कि व्यंग्य की कुरता को भी पिछला देता है। लेखक कहते हैं, वह निश्चय ही इस तल की वस्तु नहीं हैं, जहाँ संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह अपर जाति का तत्व है जिसे लोग स्पिरिचुअल कहते हैं। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। मनुष्य का धन की ओर झुकता मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है। किया। भगत जी जिससे भी मिलते सबका अभिवादन लेते और सबका अभिवादन एक बार बाजार चौक में चूरन वाले भगत जी लेखक को मिले। उन्हें देखते ही अभिवादन करते। भगत जी खुली आँख, तुष्ट और मग्नं होकर चौक बाजार से चलते चले जाते हैं। बाजार का वह जादू उनके आगे नहीं चल पाता था। बाजार के बड़े-बड़े फैंसी उनको अपनी और आकर्षित नहीं कर पाते। वह उसी दुकान के सामने रुकते ज उनकी जरूरत को चीजें मिलती थी।
लेखक कहते हैं, बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है, जो जानता है कि वह क चाहता है। जो नहीं जानते कि उन्हें क्या चाहिए वह केवल पर्चेजिंग पावर के गवं। | अपने पैसों से बाजार को विनाशक, शैतानी और व्यंग्य की शक्ति ही देते हैं। वे बाज से लाभ नहीं उठा सकते बल्कि बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिससे परस्पर सद्भाव की कमी होने लगती हैं। इस सद्भाव के हासु से आदमी आपस में भाई-भाई, सुहृदय पड़ोसी नहीं रह जाते बल्कि कोरे गाहक और बेचक का सा व्यवहार करते है। एक को हानि में दूसरा अपना लाभ देखता हैं। तब बाजार से शोषण होने लगता है। कपट सफल | होता हैं और निष्टकपट शिकार होता है। ऐसा बाजार मानवता के लिए विडंबना है। इस क्रम में केवल बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को लेखक ने अनीतिशास्त्र बताया है।
HS 2nd Year Hindi MIL Bajar Darshan Question Answers
बाजार दर्शन प्रश्नोत्तर
1. बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तर: बाजार का जादू चढ़ते ही मन किसी की नहीं मानता। उसे उस समय हर ची जरूरी उपयोगी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। परन्तु जादू की सवारी उतर ही वास्तविकता का पता चल जाता है। उस समय उसे लगता हैं, जिन फैंसी चीजों को आराम के लिए खरीदा था, वह आराम नहीं देती बल्कि खलल ही डालती है।
2. बाजार में भगतजी के व्यक्तितव का कौन सा सशक्त पहलू उभरकर आता है। क्या आपको नजर में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार सकता है ?
उत्तरः बाजार में भगतजी के व्यक्तितव का एक सशक्त पहलू उभरकर आता है भगतजी को बाजार का चकाचौंध अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते। बाजार का ज उनपर नहीं चलता है। क्योंकि बाजार जाते वक्त उनका मन खाली नहीं होता। वह अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार जाते हैं। भगतजी की निश्चित प्रतीति के कारण बाजार का सारा आमंत्रण पर व्यर्थ होकर बिखरा रहता है।मेरी नजर में भगतजी का यह आचरण समाज में शान्ति स्थापित करने में मददगार हो सकता है। क्योंकि वे पैसे की ' पर्चीजिंग पावर' का प्रयोग नहीं करते बल्कि वे प्रयोजनीयता को समझकर बाजार का सही उपयोग करते हैं। वह बाजार को सार्थकता देते हैं। बाजार को सच्चा लाभ देते हैं। जिससे समाज में संतुलन बना रहता है। जिससे समाज में शान्ति स्थापित करने में मददगार है।
AHSEC CLASS 12 Hindi MIL Bajar Darshan Question Answers
3. बाजारुपन' से क्या तात्पर्य हैं ? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किसमें है ?
उत्तरः बाजारूपन का तात्पर्य हैं, लोगो में परस्पर सद्भाव की कमी। इस सद्भाव की कमी के कारण आदमी आपस में भाई-भाई, सुहृद या पड़ोसी नहीं रहते बल्कि आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते है। वही व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं, जो जानता है कि वह क्या चाहता है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते है।
4. बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नही देखता, वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं।
उत्तरः यह सत्य हैं, कि बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता हैं। बाजार हर किसी के लिए होता है। कोई भी उसका उपयोग कर सकता है। मनुष्य अपनी सामर्थ अनुसार बाजार का लाभ उठाता है। यह उपभोकता पर निर्भर करता है, कि वह बाजार को सार्थकता प्रदान कर रहा है, या केवल बाजार का बाजारूपन ही बढ़ा रहा है। बाजार सिर्फ मनुष्य की क्रय शक्ति को देखता हैं। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो हम कह सकते हैं, कि बाजार एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। वह हर वर्ग के व्यक्ति को खरीदारी करने का समान अधिकार प्रदान करता है। वह उँचनीच का भेद नहीं करता है।
5. आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें __
क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तरः क) अक्सर देखा जाता है कि लोग पैसे की पावर का इस्तेमाल करते हैं। चाहे वह स्कूल की दाखिला के लिए हो या नौकरी प्राप्त करने के लिए पैसा शक्ति का परिचायक के रूप में दिखती हैं। कुछ एक कार्यालयों में तो रिश्वत के बिना कोई काम नहीं होता है।
ख) जहाँ पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत होता है, वही कुछ एक परिस्थिति में पैसो की शक्ति काम नहीं आती है। समाज में ऐसे बहुत सारे उदारहण मिलते हैं, जहाँ कुकर्मों को पैसे की शक्ति से दबाने की कोशिश की जाती है, परन्तु सफलता नहीं मिलती। वहाँ विजय सच्चाई की होती है।
6. बाजार दर्शन किस विद्या की रचना है ?
उत्तर: बाजार दर्शन एक निबन्ध है।
7. बाजार दर्शन के निबन्धकार कौन है ?
उत्तर: बाजार दर्शन के निबन्धकार जैनेन्द्र कुमार हैं। 8. जैनेन्द्र कुमार का जन्म कब हुआ ? उत्तर: जैनेन्द्र कुमार का जन्म सन् १९०५ में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ।
AHSEC CLASS 12 Hindi MIL Bajar Darshan Question Answers
9. जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित दो उपन्यासों का नाम बताए?
उत्तर: जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित दो उपन्यास है परख, त्यागपत्र ।
10. लेखक ने "पैसा पावर है" - ऐसा क्यों कहा?
उत्तर : लेखक ने पैसा को पावर कहा हैं, क्योंकि पैसा मनुष्य को शक्तिशाली बना देता हैं।
11. कब बाजार मनुष्य को बेकार बना सकता है ?
उत्तरः जब मनुष्य अपनी जरूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायलकर हमें बेकार बना डालता हैं।
12. "बाजार में एक जादू है" - लेखक ने ऐसा क्यों कहा हैं ?
उत्तरः लेखक ने कहा है कि जिस प्रकार चुबंक लोहे को अपनी तरफ खीचता है, ठीक उसी प्रकार बाज़ार भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
13. लेखक ने बाजार के जादू से बचने का कौन सा उपाय बताया है ?
उत्तरः लेखक ने बताया है, कि इस जादू से बचने का उपाय एक ही हैं और वह है, बाजारे जाने से पहले अपनी प्रयोजनीयता को ठीक-ठीक समझ ले |
14. भगतजी कौन हैं ?
उत्तरः भगत जी चूरन बेचनेवाले व्यक्ति हैं ?
15. किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं?
उत्तरः बाजार को सार्थकता वही व्यक्ति दे सकता है, जो जानता है, कि उसे क्या चाहिए।
HS 2nd Year Hindi MIL Bajar Darshan Question Answers
16. किस प्रकार के व्यक्ति बाजार का बाजारूपन बढ़ाते है?
उत्तरः जो व्यक्ति अपने 'पर्चीजिंग पावर' के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति रौतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं, वही बाजारूपन बढ़ाते हैं।
व्याख्या कीजिए
1. स्त्री माया न जोड़े तो क्या मैं जोहूँ ?
उत्तरः प्रसंग प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक " आरोह" के "बाजार दर्शन" नामक निबन्ध से ली गई है। इसके निबन्धकार है, जैनेन्द्र कुमार
संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्ति में निबन्धकार ने स्त्री को मायामयो बताया है।
व्याख्या : लेखक ने एक घटना का वर्णन करते हुए कहते हैं, कि एक बार उनके एक मित्र बाज़ार गये थे। गये थे एक मामूली चीज़ खरीदने के लिए परन्तु लौटे बहुत सारी चीजों के साथ। पुछने पर उन्होंने अपनी पत्नी की ओर संकेत करते हैं। लेखक कहते हैं, खरीदारी में महिला हमेशा आगे ही रहती हैं। आदिकाल से ही इस विषय में पति से पत्नी को प्रमुखता प्रमाणित है।
लेखक कहते हैं, स्त्री ही माया जोड़ती हैं। स्त्री को यहाँ मायामयों कहा गया है।
2. कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाज़ार भी फैला-का फैला ही रह जाएगा।
उत्तरः प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तुक 'आरोह' के 'बाज़ार दर्शन' नामक निबन्ध से लोया गया है। इसके निबन्धकार है, जैनेन्द्र कुमार।
संदर्भ::- प्रस्तुत पंक्तियों में निबन्धकार ने बाज़ार की जादू से बचने का उपाय बताया है।
व्याख्या :- लोग कहते है, लू से बचने के पानी पीकर जाना चाहिए। कहा जाता है, कि पानी भीतर हो तो लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। लेखक कहते है कि बाज़ार में एक प्रकार का जादू होता है और उस जादू से बचने के लिए मन लक्ष्य में भरा होना चाहिए। बाज़ार जाने से पहले यह समझ लेना चाहिए कि हमें क्या चाहिए। तभी हम बाज़ार का सही उपयोग कर पायेगें। जो व्यक्ति यह तय नहीं कर पाते हैं, कि उन्हें क्या चाहिए वह कभी भी बाज़ार का सही उपयोग नहीं कर पाते। मन लक्ष्य से भरा हो तो बाज़ार फैला का फैला हो रह जाएगा।
****