SEBA HSLC CLASS 10 (Ambar Bhag 2) Chapter-1 - पद-युग्म Solutions | The Treasure Notes

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Ambar Bhag 2 Chapter-1 - पद-युग्म Solutions

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पद-युग्म 

(1)

मोको कहाँ ढूँढै बन्दे, मैं तो तेरे पास में । 

ना मैं बकरी ना मैं भेंड़ी, ना मैं छुरी गँड़ास में । नहीं खाल में नहीं पोंछ में, ना हड्डी माँस में । 
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में । ना तौ कौनों क्रिया कर्म में, न ही जोग बैराग में । खोजी होय तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में।
मैं तो रहौं सहर के बाहर, मेरी पुरी मवास में । कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसों की साँस में ।

(2)

संतो देखत जग बौराना ।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।। नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना । आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितेब कुराना । कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना ।। आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना । पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना ।। टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना । साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।
हिंदु कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना । आपस में दोउ लरि लरि मुए, मर्म न काहू जाना।।
घर घर मंतर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना। गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना ।।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना । केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना।।

कक्षा 10 हिंदी (अंबर भाग 2) अध्याय-1 पद-युग्म

पद-युग्म

पाठ्यपुस्तक प्रश्न और उत्तर :

1. सही विकल्प का चयन करें:


(क) 'मोको, बंदे कहाँ मिलते हैं' - यहाँ 'बंदे' शब्द का क्या अर्थ है?

(i) पुजारी (ii) दोस्त

(iii) नौकर (iv) भगवान

उत्तर: (iii) नौकर


(ख) हिन्दू किसे प्रिय हैं?

(i) खुदा (ii) राम

(iii) तुर्क (iv) रहीमी

उत्तर: (ii) राम

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्यों में दें:

(क) यहाँ 'मैं' शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है 'मैं तुम्हारे निकट हूँ'?

उत्तर: 'मैं तुम्हारे निकट हूँ' यहाँ 'मैं' शब्द का प्रयोग ईश्वर के लिए किया गया है।


(बी) देवल या मस्जिद में कौन नहीं रहता है?

उत्तर: देवल या मस्जिद में ईश्वर का वास नहीं होता।


(ग) 'खोझी' कौन है ?

उत्तर: 'खोजी' एक सच्चा भक्त है।

(घ) तुर्क किसे प्रिय हैं?

उत्तर : रहीम का अर्थ है अल्लाह तुर्कों को प्रिय है।

(ङ) 'मेरी पुरी मावस में' - यहाँ 'मेरी' शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर: 'मेरीपुरी मावस' में यहाँ 'मेरी' शब्द का प्रयोग ईश्वर के लिए किया गया है।


(च) पीर औलिया क्या पढ़ता है?


उत्तर : पीर-औलिया ने कुरान आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़े।


(छ) पीर-औलिया किसे अपना शिष्य (शिष्य) बनाते हैं?

उत्तर पीर-औलिया अपने मुरीद (शिष्य) को उन पर पूर्ण विश्वास रखते हैं, जो उनके द्वारा बताए गए उपायों का पालन करते हैं।


(ज) 'छप तिलक अनुमान' यहाँ 'छप' और 'तिलक' एकमुश्त धूमधाम या ज्ञान के हैं?

उत्तर: 'छप तिलक अनुमान'- यहाँ 'छप' और 'तिलक' बाह्य अहंकार के प्रतीक हैं।


(झ) 'आपसे में दो लारी-लीरी मुए' यहाँ किसके बीच लड़ाई की बात की गई है?

उत्तर: 'आपसे में दो लारी-लरी मुए'- यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच यानी दो संप्रदायों के बीच लड़ाई की बात की गई है।


(ञ) कबीरदास ने किसे 'भर्मा' कहा है?

उत्तर कबीर दास ने जाति-भेदभाव, अस्पृश्यता, अहंकार, धार्मिक अतिशयोक्ति आदि की बुराइयों को 'भर्मा' कहा है।


कक्षा 10 हिंदी (अंबर भाग 2) अध्याय -1  पद-युग्म 


3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें

(क) मनुष्य ईश्वर को कहाँ खोजता है?

उत्तर: मनुष्य विभिन्न धार्मिक स्थानों जैसे मंदिरों, मस्जिदों आदि में ईश्वर की खोज करता है। ईश्वर के आशीर्वाद के लिए, कई हिंदू कैलास पर्वत पर जाते हैं और मुसलमान मक्का शहर में काबा जाते हैं।


(ख) भगवान को पाने के लिए मनुष्य किस तरह के कर्मकांड करता है?

उत्तर: मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के कर्मकांड करता है। जैसे मंदिर की मस्जिद में घूमना, जप करना, प्रातः स्नान करना, भगवान के नाम से पत्थर की मूर्ति की पूजा करना, कुरान आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़ना, चंदन का टीका लगाना आदि।


(ग) कबीर दास के श्लोक की किन पंक्तियों में यज्ञ का संकेत मिलता है?

उत्तर : कबीरदास द्वारा रचित श्लोक की निम्नलिखित पंक्तियों में यज्ञोपवीत कर्मकाण्ड का संकेत मिलता है, न मैं बकरी हूँ, न भेड़ हूँ, न गोरे में छुरा घोंपता हूँ। न खाल में, न पोंछे में, न मांस में हड्डी में।

(घ) कबीर दास के अनुसार सच्चा साधक ईश्वर को कैसे पाता है?

उत्तर: कबीर दास के अनुसार एक सच्चा साधक ईश्वर को तुरंत पाता है, क्योंकि वह सच्चे हृदय से ईश्वर को खोजता और उसकी पूजा करता है।


(ई) भगवान का वास्तविक निवास कहाँ है?


उत्तर: ईश्वर का वास्तविक वास मनुष्य के हृदय में मनुष्य के श्वास के समान है।


(च) संत कबीरदास ने दुनिया को उबाऊ क्यों कहा है?

उत्तर: कबीरदास ने संसार को नीरस कहा है क्योंकि ईश्वर और धर्म का सच्चा सार बताकर संसार के लोग हत्या करने के लिए दौड़ पड़ते हैं और झूठ बोलने में विश्वास करते हैं। धर्म-ईश्वर की पूजा के नाम पर लोग पाखंड और ढोंग करते हैं, लेकिन कोई भी वास्तविक सार को स्वीकार नहीं करना चाहता।


(छ) 'सांच कहां तो मारन धवई, मिथ्या जग पटियाना' - कवि ने यहां क्या सच और झूठ बोला है? 

उत्तर: 'सांच कहाँ तो मारन धवाई, मिथ्या जग पटियाना' - यहाँ कवि ने ईश्वर के प्रति सहज और आडंबरपूर्ण भक्ति को सत्य कहा है और भक्ति के नाम पर किया जाने वाला पाखंड और आडंबर झूठ है। यानी दुनिया सच को नहीं बल्कि झूठ को मानती है।


(ज) हिंदू और मुसलमान आपस में क्यों लड़ते-मरते रहते हैं? उन्हें किस 'मर्म' पर ध्यान देने की ज़रूरत है?

उत्तर: हिंदू और मुसलमान अपनी-अपनी मूर्तियों, राम और रहीम को लेकर आपस में लड़ते और मरते रहते हैं। हिंदू अपने धर्म को बड़ा कहते हैं और मुसलमान अपने धर्म के अहंकार और अपव्यय दोनों के कारण आपस में लड़ते हैं। वे 'मर्म' को नहीं समझते कि ईश्वर एक है। राम और रहीम दो नहीं एक हैं। उन्हें इस बिंदु पर ध्यान देने की जरूरत है।


(झ) कबीर दास के अनुसार अन्तकाल में गुरु-शिष्य कैसे पछताते हैं? इस अफसोस का कारण क्या है?

उत्तर : कबीर दास के अनुसार गुरु-शिष्य जिन्हें अपने अभिमान का अभिमान होता है, वे अंत में पछताते हैं। ऐसे गुरु-शिष्य को ईश्वर के दर्शन नहीं होते। उन्हें सच्चा ज्ञान नहीं मिलता। कबीरदास के अनुसार इस पछतावे का कारण गुरु-शिष्य की अज्ञानता है। गुरु परम तत्व से अनभिज्ञ होकर शिष्यों को झूठे मन्त्र देते रहते हैं।

( ञ) कबीरदास ने धार्मिक अलौकिकों का विरोध करते हुए ध्यान देने की क्या बात कही है?

उत्तर : कबीरदास जी ने धार्मिक अतिशयोक्ति का विरोध करते हुए दिखावा करने की बजाय ईश्वर की सच्ची और सहज भक्ति पर ध्यान देने की बात कही है। कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर का धाम न मन्दिर, न मस्जिद में है, न योग-वैराग्य में। भगवान को पाने के लिए न तो धार्मिक अनुष्ठानों और न ही तीर्थ यात्रा की आवश्यकता होती है। आसान तरीके से भगवान की पूजा करनी चाहिए।

Seba Class 10 Hindi Ambar bhag 2 Solutions 

4. अर्थ स्पष्ट करें 

(क) ना तो कौनों क्रिया कर्म में ना ही जोग बैराग में। 

उत्तर : वर्तमान पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंबर भाग-2' से 'पद-युग्म' नामक कविता से ली गई है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं।

उपरोक्त पंक्ति में कवि का अर्थ यह है कि किसी भी धार्मिक क्रिया, कर्मकांड, योग-साधना या साधु-संन्यासी बनने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है। ईश्वर सर्वव्यापी और निराकार है। इसलिए ईश्वर प्राप्ति के लिए फिजूलखर्ची करना व्यर्थ है।

(ख) खोजी होय तुरतै मिलिहाँ, पल भर की तलास में। 

उत्तर: वर्तमान पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंबर भाग-2' के ' पद-युग्म' नामक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं।

उपरोक्त पंक्ति में कवि का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति ईश्वर को खोजता है, वह आत्म-ध्यान के द्वारा क्षण भर में ही उसे प्राप्त कर लेता है क्योंकि ईश्वर कहीं बाहर नहीं बल्कि हमारे हृदय के गढ़ में रहते हैं। अर्थात् शुद्ध हृदय वाले को ही ईश्वर के दर्शन होते हैं।

Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-1 पद-युग्म

5. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए :

(क) कबीरदास के अनुसार हमें अपने प्रिय को कहाँ ढूँढ़ना चाहिए?

उत्तर कबीरदास के अनुसार हमें अपने आराध्य अर्थात् ईश्वर को अन्यत्र बाह्य साधनों से खोजने की आवश्यकता नहीं है। हमारी आराधना सर्वव्यापी है और हम सबके हृदय में निवास करती है। अपनी आंतरिक पवित्रता के बल पर हम अपने ईश्वर को आसानी से पा सकते हैं।

(ख) संत कबीरदास द्वारा रचित दूसरे श्लोक में वर्णित ब्रह्मबरस का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर : कबीर दास ने अपने दूसरे श्लोक में बाह्य अहंकार का उल्लेख करते हुए कहा है कि विवेक की अवहेलना करके नियमों और धर्मों का पालन करना और विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान करना व्यर्थ है। दर्शन के अभाव में सभी प्रकार की धार्मिक गतिविधियाँ मात्र दिखावा हैं और इनसे किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ नहीं होता है।

(ग) कबीरदास ने परमात्मा को पाने का कौन-सा आसान तरीका बताया है?

उत्तर : कबीर दास ने अपने पोस्ट में ईश्वर प्राप्ति का उल्लेख किया है और कहा है कि ईश्वर की भक्ति स्वाभाविक रूप से करनी चाहिए। ईश्वर सभी प्राणियों में श्वास के समान विद्यमान है। इसलिए, अपनी अंतरात्मा की पवित्रता के माध्यम से, व्यक्ति अपने भीतर उस सर्वोच्च तत्व को देख सकता है, क्योंकि इस रूप में आत्मा-परमात्मा का मिलन सहजता से होता है।

SEBA Class 10 Hindi Mil Ambar Bhag 2 Notes 

6. संदर्भ की व्याख्या करें-

(ए) सभी सांसों की सांस में न तो मैं देवल और न ही मुख्य मस्जिद ………।

उत्तर : संदर्भ में प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंबर भाग-2' के 'पद-युग्म' नामक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं। इस श्लोक में बताया गया है कि हमें अपने आराध्य भगवान को केवल मंदिर, मस्जिद या अन्य तीर्थ स्थानों में या कहीं और खोजने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वे हमारे साथ सभी प्राणियों के हृदय की धड़कन में वास करते हैं।

व्याख्या: कबीर दास कहते हैं कि हमारे आराध्य भगवान किसी जाति, धर्म, संप्रदाय तक सीमित नहीं हैं। वह हमेशा हमारे दिल के किले में रहते हैं। जो इन्हें खोजता है, आत्म-ध्यान के बल पर उसे क्षण भर में अपने भीतर पाता है। कवि कहता है कि परमात्मा हमारे साथ-साथ सभी प्राणियों के हृदय में वास करता है, इसलिए उसे अपने से बाहर खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है।

(ख) संतों को देखकर जगत्……. उनमें ज्ञान नहीं है।

उत्तर: प्रसंग: वर्तमान श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंबर भाग-2' के 'पद-युग्म' नामक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं। इस श्लोक में सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए कहा गया है कि लोग झूठ पर तुरंत विश्वास कर लेते हैं, लेकिन सच बोलने वाले की कोई नहीं सुनता क्योंकि लोग स्वयं कुछ भी नहीं परखते।

व्याख्या: कबीरदास कहते हैं कि इस संसार के लोग पागल हैं। इस समाज के लोग सच बोलने वाले को मारने के लिए दौड़ते हैं, लेकिन झूठ पर तुरंत विश्वास कर लेते हैं। इस समाज में नियमानुसार अपने धर्म का पालन करने वाले लोग हैं, जो सुबह स्नान कर पत्थर की मूर्ति की पूजा करते हैं, लेकिन वे आत्मा की प्रकृति को बिल्कुल नहीं जानते हैं।

(ग) मैंने उनमें बहुत कुछ देखा है ……….. जो ज्ञान है।

उत्तर: प्रसंग: वर्तमान श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंबर भाग-2' के 'पद-युग्म' नामक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता संत कवि कबीरदास हैं। इस मार्ग में बताया गया है कि धार्मिक गुरु अपने ज्ञान और ज्ञान के आधार पर भगवान की व्याख्या करते हैं, लेकिन वे स्वयं भगवान के बारे में नहीं जानते हैं।

व्याख्या: कबीरदास कहते हैं कि यह संसार पाखंड से भरा है। इस दुनिया में कई ऐसे धार्मिक गुरु हैं, जो अपने धर्मग्रंथों को पढ़ते रहते हैं और समाज के लोगों को ज्ञान का उपदेश भी देते रहते हैं। लेकिन ऐसे तथाकथित धार्मिक गुरु माया के जाल में पड़ जाते हैं और स्वयं ईश्वर को नहीं जानते। अर्थात् तत्वज्ञान के बिना कोई धार्मिक गुरु अपने शिष्य को सही मार्ग नहीं दिखा सकता।


(घ) हिंदू कहीं कहीं मोही राम प्यारा ………। , सहज महसूस करें।

उत्तर: प्रसंग: वर्तमान श्लोक संत कवि कबीरदास द्वारा रचित हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंबर भाग-2' के 'पद-युग्म' नामक कविता से उद्धृत है। इस श्लोक में धार्मिक अतिशयोक्ति के कारण विभिन्न धर्मों के बीच उत्पन्न हुए आपसी वैमनस्य पर प्रकाश डालते हुए बताया गया है कि शुद्ध मन की शुद्ध भक्ति के बल पर आत्मा और परमात्मा का सहज ही मिलन होता है।

व्याख्या: यहाँ कबीर दास कहते हैं कि तत्त्वबोध के अभाव में विभिन्न सम्प्रदायों के लोग अपने-अपने धर्मों और सम्प्रदायों में व्याप्त बाह्यता के भ्रम में पड़ जाते हैं और अपने धर्म और ईश्वर को दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं। इसलिए कवि इन बाह्यताओं के भ्रम से बाहर निकलकर दर्शन पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। उनका मानना ​​है कि हमारे पूज्य भगवान इन धार्मिक कल्पनाओं में नहीं बल्कि हमारे दिलों में हैं। जिसे हम अपने भीतर आंतरिक पवित्रता और शुद्ध भक्ति के बल पर देख सकते हैं, क्योंकि इस रूप में आत्मा-परमात्मा का मिलन सहजता से होता है।

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1 comment

  1. Very nice and very helpful 👍😊
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