AMBAR BHAG 2 CHAPTER- 4 TODTI PATHAR |
SEBA HSLC CLASS 10 (Ambar Bhag 2) Chapter-4 तोड़ती पत्थर
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कक्षा 10 हिंदी (अंबर भाग 2) अध्याय-4 तोड़ती पत्थर -सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर
1. सही विकल्प का चयन कीजिए:
(क) कवि ने पत्थर तोड़नेवाली को देखा था
(i) इलाहाबाद के पथ पर
(ii) बनारस के पथ पर
(iii) ऊँची पहाड़ी पर
(iv) छायादार पेड़ के नीचे
उत्तर : (i) इलाहाबाद के पथ पर
(ख) स्त्री पत्थर किस समय तोड़ रही थी
(i) सुबह
(ii) शाम
(iii) दोपहर
(iv) रात
उत्तरः (iii) दोपहर
2. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:
(क) पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है ?
उत्तरः पत्थ तोड़नेवाली स्त्री का परिचय देते हुए कवि कहते हैं कि वह साँवले रंग की सुंदर युवती थी जो आँखें झुकाए मन से पत्थर तोड़ने के काम में लीन थी।
(ख) पत्थर तोड़नेवाली स्त्री कहाँ बैठकर काम कर रही थी और वहाँ किस चीज की कमी थी ?
उत्तर: पत्थर तोड़नेवाली स्त्री इलाहाबाद में सड़क के किनारे बैठकर काम कर रही थी और वहाँ छायादार वृक्ष की कमी थी।
(ग) कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर क्यों देखने लगी ?
उत्तरः कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर इसलिए देखने लगी, क्योंकि वह सामाजिक वैषम्य (विषमता) की ओर उसका (कवि का ध्यान आकृष्ट कराना चाहती थी।
(घ) 'छिन्नतार' शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर: 'छिन्नतार' शब्द का अर्थ 'टूटी निरन्तरता' या 'क्रम-भंग होना' है।
(ङ) 'तोड़ती पत्थर' कविता का प्रतिपाद्य लिखिए। उत्तरः प्रस्तुत कविता में दोपहर की चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती हुई एक युवा मजदूरिन के माध्यम से समाज का यथार्थ चित्रण किया गया है। सामाजिक विषमता की मारी निम्न वर्ग की यह सुन्दर मजदूरिन शरीर को झुलसा देनेवाली तपती धूप में पत्थर तोड़ने को मजबूर है। समाज में व्याप्त सामाजिक एवं आर्थिक विषमता तथा जीवन की कठिनाइयों के विरुद्ध संघर्ष को उजागर करना ही इस कविता का प्रतिपाद्य है।
3. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) श्याम तन, भर बँधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि वह मजदूरिन साँवले रंग की सुंदर युवती थी, लेकिन जीवन की विवशता के कारण उसकी आँखें झुकी हुई थीं। परन्तु वह अपने वर्तमान जीवन से निराश नहीं थी बल्कि अपने क्रांतिकारी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए तपती धूप में हथौड़ा लेकर पूरी तन्मयता के साथ पत्थरों से लड़ रही थी।
(ख) सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार;
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि उस युवा मजदूरिन की सहज दृष्टि के सितार पर दर्द का जो राग था, वह राग कवि ने पहली बार सुना था अर्थात् इस तरह किसी सुन्दर युवती के विवश और मजबूर जीवन की पीड़ा का अनुभव उन्हें आज तक नहीं हुआ था ।