Ambar Bhag 2 Chapter-5 यह दंतुरित मुसकान Question Answer'2023 | SEBA CLASS 10 | The Treasure Notes

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Ambar Bhag 2 Chapter-5  यह दंतुरित मुसकान Question Answer'2023 | SEBA CLASS 10 | The Treasure Notes
AMBAR BHAG 2 CHAPTER- 5 Yah Danturit Muskan

SEBA HSLC CLASS 10 (Ambar Bhag 2) Chapter-5  यह दंतुरित मुसकान 

In this page we have provided  Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter- 5 यह दंतुरित मुसकान Solutions  according to the latest SEBA syllabus pattern for 2022-23. (Ambar Bhag 2 : Chapter- 5 Yah Danturit Muskan Question Answer) Reading can be really helpful if anyone wants to understand detailed solutions and minimize errors where possible. To get a better understanding and use of concepts, one should first focus on Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-5 as it will tell you about the difficulty of the questions and by Reading The Notes you can score good in your upcoming exams. 

कक्षा 10 हिंदी (अंबर भाग 2) 

अध्याय-5 यह दंतुरित मुसकान


कवि-संबंधी प्रश्न एवं उत्तर

1. कवि नागार्जुन जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

उत्तर: कवि नागार्जुन जी का जन्म सन् 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था।

2.कवि नागार्जुन जी ने बौद्ध धर्म की दीक्षा कब और कहाँ ली थी ? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी ने बौद्ध धर्म की दीक्षा सन् 1936 में श्रीलंका में ली थी।


3. कवि नागार्जुन जी का संपूर्ण कृतित्व किस नाम से और कितने खंडों में प्रकाशित है ?

उत्तरः कवि नागार्जुन जी का संपूर्ण कृतित्व 'नागार्जुन रचनावली' के नाम से सातखंडों में प्रकाशित है।

4. कवि नागार्जुन जी को मैथिली भाषा में कविता के लिए कौन-सा पुरस्कार प्रदान किया गया था ? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी को मैथिली भाषा में कविता के लिए 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार प्रदान किया गया था।

5.कवि नागार्जुन जी को क्यों जेल जाना पड़ा था?
उत्तरः कवि नागार्जुन जी को राजनैतिक सक्रियता के कारण जेल जाना पड़ा था ।

6. मातृभाषा मैथिली में कवि नागार्जुन जी किस नाम से प्रतिष्ठित थे ? 

उत्तरः मातृभाषा मैथिली में कवि नागार्जुन जी 'यात्री' के नाम से प्रतिष्ठित थे।

7. कवि नागार्जुन जी का मूल नाम क्या था ?

उत्तर: कवि नागार्जुन जी का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था

8. कवि नागार्जुन जी ने किन-किन भाषा में कविताएँ लिखी ? 

उत्तर: कवि नागार्जुन जी ने हिन्दी, मैथिली, बांग्ला और संस्कृत भाषा में कविताएँ लिखीं।

9. कवि नागार्जुन जी को आधुनिक कबीर क्यों कहा गया है ? 

उत्तर: कवि नागार्जुन जी व्यंग्य कला में माहिर थे। उनकी इसी विशेषता की वजह से उन्हें आधुनिक कबीर कहा जाता है।

10. कवि नागार्जुन जी का स्वर्गवास कब हुआ था ? 

उत्तरः कवि नागार्जुन जी का स्वर्गवास सन् 1998 में हुआ था। 



कविता का सारांश

कवि नागार्जुन अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण अपने घर से प्रायः दूर रहते थे और इस कारण वे अपने शिशु की बाल सुलभ मुसकान के अनुभव से भी वंचित रह गये एवं लम्बी यात्रा के कारण अपने ही शिशु से अपरिचित हो गए। अपने शिशु की मधुर मुसकान को पहली बार देखकर कवि के मन में जो भाव उभरे उन्होंने उसे इस कविता में उजागर किया है। कवि ने शिशु के नए-नए झलकते दाँतों के साथ मधुर मुसकान का बखूबी चित्रण किया है।

शिशु की मधुर मुसकान को देखकर कवि का हृदय स्नेह से फूट पड़ता है। वे प्रफुल्लित हो उठते हैं और शिशु से कहते हैं कि उसकी दंतुरित मुसकान से मृतक में भी जान आ जाती है यानि हमेशा उदास, हताश रहने वाले व्यक्ति भी प्रसन्नता का अनुभव करने लगते हैं। धूल से सने हुए शिशु के शरीर के अंगों को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो कमल का फूल सरोवर में न खिलकर उनकी झोपड़ी में खिला है। बाँस और बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों। मानो कठोर पत्थर भी उसके स्पर्श से पिघलकर जल में परिवर्तित होने लगे हों, अर्थात् कठोर हृदयी व्यक्ति भी इस मधुर मुसकान के जादू से भावुक हो जाता है।

मधुर मुसकान के साथ जब पहली बार शिशु कवि को न पहचानकर अपलक निहार रहा था, तब उसकी माँ द्वारा उसका परिचय कवि से करवाने पर शिशु टेढ़ी नज़र से उन्हें देख रहा था। कवि से नज़र मिलने पर उसने हल्की-सी मुसकान बिखेर दी। वह हल्की मुसकान कवि को बड़ी मोहक लगने लगी। कवि ने माँ और शिशु को धन्य बताया है। शिशु जहाँ अपनी मोहक छवि के कारण धन्य है तो माँ उस जैसे शिशु को जन्म देकर तथा उसका साथ पाकर धन्य हो गयी। शिशु ने कवि को पहचानकर जो एक मुसकान बिखेरी, वही कवि के लिए सबसे मूल्यवान बन गयी। सचमुच शिशु की मुसकुराहट प्राणवान थी। 



पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

■ बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन कीजिए:

(क) बच्चे की दंतुरित मुसकान किसमें जान डाल सकती है ? 

(i) बेहोश व्यक्ति 

(ii) बीमार

(iii) मृतक

(iv) कवि

उत्तरः (iii) मृतक

(ख) धूल से सने शरीर वाले बच्चे के रूप में कवि की झोंपड़ी में किसके फूल खिल रहे हैं ?

(i) गेंदा

(ii) गुलाब

(iii) शेफालिका 

(iv) कमल

उत्तरः (iv) कमल

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दीजिए:

(क) 'पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण' यहाँ 'कठिन पाषाण' किसका प्रतीक है? 
उत्तर: 'पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण' यहाँ 'कठिन पाषाण' कठोर हृदय का प्रतीक है।

(ख) किसका स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया होगा ?

उत्तरः धूल से सने हुए बच्चे का स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया
होगा। 

(ग) 'बाँस' एवं 'बबूल' किसके प्रतीक हैं ?

उत्तरः 'बाँस' एवं 'बबूल' कठोर हृदय वालों के प्रतीक हैं।

(घ) बच्चा एकटक किसे देख रहा है ?

उत्तरः बच्चा एकटक कवि को देख रहा था।  

(ङ) बच्चे की मधुर मुसकान देख पाने का श्रेय कवि किसे देते हैं ?

उत्तरः बच्चे की मधुर मुसकान देख पाने का श्रेय कवि बच्चे की माँ को देते हैं।

(च) 'इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क'- यहाँ अतिथि शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?

उत्तर: 'इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क'- यहाँ अतिथि शब्द कवि के लिए प्रयुक्त हुआ है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) बच्चे की 'दंतुरित मुसकान' का क्या तात्पर्य है ? 

उत्तरः बच्चे की 'दंतुरित मुसकान' का तात्पर्य उस छोटे बच्चे की मुसकान से है जिसके अभी-अभी दाँत निकले हैं। यह मुसकान इतनी प्रिय होती है कि निराश, हताश तथा उदासीन व्यक्ति के मन को प्रफुल्लता तथा खुशी से भर देती है। अर्थात् बच्चे की दंतुरित मुसकान निश्छल प्रेम का प्रतीक है। 

(ख) बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तरः बच्चे की दंतुरित मुसकान अर्थात् बच्चे के नए-नए झलकते दाँत के साथ मधुर मुसकान को देखकर कवि अपार सुख का अनुभव करते हैं। कवि को ऐसा लगता है कि उसकी मुसकान से उदासीन व निराश चेहरे भी खिल उठते हैं। बच्चे की दंतुरित मुसकान मृतक में भी जान डाल देती है। धूल से सने हुए बच्चे के शरीर के अंगों को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है, जैसे तालाब को छोड़कर कोई कमल का फूल उनकी झोपड़ी में खिल गया हो। शिशु की बाल सुलभ मुसकान से पत्थर जैसे कठोर हृदय में भी स्नेह की धारा फूट पड़ती है। उसी प्रकार कवि के मन में भी बच्चे की मुसकान से बात्सल्य और प्रेम उमड़ आता है।

(ग) बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति का मुसकान में क्या अंतर है ? 

उत्तरः बच्चे की मुसकान से कठोर हृदय भी अपनी कठोरता को छोड़कर कोमल बन जाता है। जबकि बड़ों की स्वार्थ भरी मुसकान लोगों के दिलों को आहत कर देती है। बच्चे मन के साफ-सुथरे तथा स्वच्छ हृदय के होते हैं। बच्चे की मुसकान में स्वाभाविकता, सहजता, मधुरता तथा निश्छलता होती है। वे स्वार्थी नहीं होते हैं, जबकि बड़ों की मुसकान समय के अनुसार बदलती रहती है। उनकी मुसकान कृत्रिमता, कुटिलता तथा चालाकी भरी भी हो सकती है। उनकी मुसकान में स्वार्थ की गंध रहती है तथा सहजता न होकर परायापन का भाव रहता है।

(घ) बच्चे की मुसकान की क्या विशेषताएँ हैं ? 
 
उत्तरः बच्चे की मुसकान अत्यंत मोहक लगती है। बच्चे की मुसकान कठोर-से कठोर हृदय को भी पिघला देती है। बालक की मुसकान को अमूल्य माना जाता है। इस मुसकान को देखकर तो जिंदगी से निराश और उदासीन लोगों के ह्रदय भी प्रसन्नता से खिल उठते हैं। बच्चे की मुसकान में निःस्वार्थता, आत्मीयता, कोमलता, सहृदयता, सहजता एवं आकर्षण की विशेषताएँ रहती है।

(ङ) कवि को कैसे पता चला कि बच्चा उसे पहचान नहीं पाया है ? 

उत्तरः जब बच्चा कवि को घूरकर देखता है। पहचान न पाने के कारण लगाता घूरकर देखते रहने के कारण कवि को लगता है कि शायद बच्चा उसे पहचान नहीं पाया है।

(च) कवि अपने-आप को 'चिर प्रवासी' और 'अतिथि' क्यों कह रहे हैं ? 

उत्तर: कवि अपने आप को 'चिर प्रवासी' और 'अतिथि' कह रहा है, क्योंकि वह अपनी घुमक्कड़ प्रवृति के कारण अधिकांश समय अपने घर से दूर रहा और बालक के लिए भी अपरिचित-सा हो गया। कवि अतिथि की तरह बहुत दिनों के बाद घर लौटा है। अपनी इसी स्थिति के कारण वह अपने-आप को चिर प्रवासी तथा अतिथि कह रहा है।

4.निम्नलिखित पद्यांशों के आशय स्पष्ट कीजिए :

(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात

उत्तर: बच्चे के नन्हें-नन्हें दाँतों के साथ उसकी मधुर मुसकान कवि के अंतःकरण को छू जाती है। वे उस मुसकान से अपार प्रफुल्लता का अनुभव करते हैं। बच्चे की एक नन्हीं सी मुसकान कवि की उदासी को दूर कर देती है। उसके धूल से सने हुए शरीर को देखकर, कवि को शिशु की मुसकराहट कीचड़ में खिले हुए कमल के फूल की तरह लगती है। शिशु देखकर कवि को ऐसा लगता है कि कमल का फूल अपने सरोवर को छोड़कर उनके घर में खिल उठा है 1 आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुसकान किसी कमल के फूल से कम नहीं थी।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग गए शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?

उत्तर: कवि बच्चे के नए-नए दाँतों को झलकती मुसकान पर मुग्ध थे। उसकी मुसकान कवि को अत्यंत मोहक लग रही थी। कवि स्वयं को बाँस और बबूल की तरह कठोर मानते हैं। कवि बच्चे से कहते हैं कि उसकी मनोहारी मुसकान को देखकर तथा उसका स्पर्श पाकर कठोर हृदयी भी अपनी कठोरता को छोड़कर सहृदय बन जाएगा। उसका स्पर्श पाकर बाँस और बबूल से भी शेफालिका के फूल झरने लगेंगे अर्थात् उसका स्पर्श इतना सुकोमल और प्रसन्नता देता है कि कोई भी व्यक्ति उसकी एक मुसकराहट को देखकर भावुक हो उठेगा।

(ग) इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क

उत्तरः कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य हैं, जो तुम्हें एक-दूसरे का साथ मिला है। मैं तो सदैव बाहर ही रहा, तुम्हारे लिए मैं अपरिचित ही रहा। मैं एक अतिथि हूँ । मुझसे तुम्हारी आत्मीयता कैसे हो सकती है ? अर्थात् मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे एक लिए तो तुम्हारी माँ की उँगलियों में ही आत्मीयता है, जिन्होंने तुम्हें पंचामृत पिलाया, इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे तिरछी नज़रों से देख रहे हो । वस्तुतः कवि को बच्चे की दंतुरित मुसकान अति प्रिय लगती है।

5.निम्नलिखित प्रश्नों के सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) यह दंतुरित मुसकान' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। 

उत्तरः 'यह दंतुरित मुसकान' कविता के माध्यम से कवि नागार्जुन जी ने एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान का सुंदर वर्णन किया है । कवि बच्चे की दंतुरित मुसकान को देखकर आह्लादित हो जाता है। कवि में नए जीवन का संचार हो जाता है। बच्चे की मुसकान निश्छल होती है । कवि को लगता है कि यह मुसकान मृत व्यक्ति में भी प्राण डाल देगी। ऐसी मधुर मुसकान की सुंदरता को देखकर तो कठोर से कठोर व्यक्ति का दिल भी पिघल जाएगी। अर्थात् कवि कहता है कि बच्चे की निश्छल व निःस्वार्थ मुसकान जीवन से निराश व उदासीन व्यक्ति के हृदय में प्रफुल्लता व खुशी का भाव भर देती है। कविता के जरिए कवि ने बच्चे की अतुलित मुसकान में जीवन का संदेश छिपे रहने की बात कही है। 

(ख) कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन उदाहरणों के माध्यम से व्यक्त किया है ? 

उत्तरः कवि, बच्चे की दंत झलकती मुसकान पर इस तरह मुग्ध थे कि बच्चों की मुसकान के सौंदर्य पर कवि ने अनेक बिंबों के माध्यम से अपनी खुशियों को व्यक्त किया है। बच्चे की मुसकान इतनी मधुर तथा मनमोहक होती है कि वह मुर्दे में भी जान डाल देती है। अगर कोई उदास, निराश व्यक्ति उसकी मुसकान देख ले तो वह भी प्रसन्नता से खिल उठता है। बच्चे की मुसकान तथा उसके धूल से सने अंगों के सौंदर्य को देखकर कवि को ऐसा लगता था, जैसे कि कमल का फूल तालाब को छोड़कर उनकी कुटिया में खिल उठा हो। कवि कहते हैं कि बच्चे की एक मुसकान से पत्थर भी पिघलकर जल के रूप में बदल जाता है। उसकी मुस्कान से तो बबूल और बाँस से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं, अर्थात् शिशु की मुसकान इतनी सुकोमल और प्रसन्नतादायक होती है कि कठोर से कठोर व्यक्ति भी भावुक हो उठता है।

(ग) यह दंतुरित मुसकान' कविता के आधार पर बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द - चित्र उपस्थित हुआ है, उसे शब्दों में लिखिए।

उत्तरः कविता के अनुसार कवि की मुलाकात शिशु से उस समय होती है, जब शिशु के नये-नये दाँत निकल रहे थे। शिशु की मधुर मुसकान के बीच झलकते दंत उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहे थे और कवि इसी मुसकान पर मुग्ध हो उठे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके नीरस जीवन में ऊर्जा का संचार हो गया। कवि

को ऐसा लगा मानो जैसे तालाब का कमल उनके घर में ही खिल गया हो। शिशु उन्हें एकटक देख रहा था मानो वह जानना चाहता था कि यह अनजान व्यक्ति कौन है, पर जब शिशु का परिचय उनसे (कवि से) हो गया तो वह अपनी तिरछी नज़रों से कवि को देखकर मुसकराने लगा, जिससे कवि के हृदय में स्नेह की धारा बहने लगी।

6. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) “तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान रहे जलजात।"

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंबर भाग-2' के अंतर्गत नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता यह दंतुरित मुसकान' से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि शिशु की दंतुरित मुसकान देखकर इतने मुग्ध हो गए हैं कि उन्होंने अनेक बिंबों के माध्यम से अपनी प्रसन्नता का चित्रण किया है।

कवि शिशु के नए-नए दाँतों के साथ उसकी मुसकान को देखकर सुख का अनुभव करते हुए कहता है कि उसकी मधुर मुसकान किसी बेजान में जान दाल सकती है अर्थात् यह किसी भी हताश नाश व्यक्ति में खुशियों का संचार कर सकती है। अगर कोई उदास व्यक्ति उसकी मुसकान देख ले तो प्रसन्नता से खिल उठेगा। कवि कहता है कि उसके धूल से सने हुए शरीर के अंगों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे कमल का फूल सरोवर में खिलने की बजाय उसके घर में खिला हो। उसके स्पर्श से पत्थर भी पिघलकर जल बन जाता है। मानो कठोर हृदय भी उसका स्पर्श पाकर अपनी कठोरता का त्यागकर भावुक हो जाता है। आशय यह है कि शिशु की दंतुरित मुसकान आनंद व प्रसन्नता प्रदान करती है।

(ख) "तुम मुझे पाए आँख लूँ मैं फेर ?"

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक" अंबर भाग-2" के अंतर्गत कवि नागार्जुन

जी द्वारा रचित कविता — यह दंतुरित मुसकान' से उद्धृत हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि शिशु की दंतुरित मुसकान पर मुग्ध होकर शिशु के

माँ के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहता है कि शिशु जो एकटक उसे निहार रहा है, वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा है, यह सिर्फ उसकी माँ की वजह से संभव हुआ है। माँ की मध्यस्थता के बिना शिशु को अपने पिता का परिचय नहीं मिल पाता।

कवि कहता है कि शिशु उन्हें पहचानने का प्रयास करते हुए उन्हें अपलक निहार रहा है। शायद लगातार देखते रहने के कारण वह थक गया होगा। इसलिए कवि अपनी दृष्टि उसकी ओर से हटा लेता है। वह उसे पहली बार पहचान नहीं सका तो कोई बात नहीं। कवि कहता है कि अगर शिशु की माँ का सहारा न होता तो वह उसकी दंतुरित मुसकान को देख नहीं पाता और न ही उसकी मधुर मुसकान का आनंद उठा पाता।

(ग) “धन्य तुम, माँ भी - कराती रही हैं मधुपर्क।"

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक " अंबर भाग-2" के अंतर्गत कवि नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता “यह दंतुरित मुसकान" से ली गई हैं।

इन पंक्तियों में कवि बच्चे की दंतुरित मुसकान पर मुग्ध होकर बालक की माँ के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहता है कि बच्चा जो एकटक उसे निहार रहा है, वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा है, यह सिर्फ उसकी माँ की वजह से संभव हुआ है।

कवि कहता है कि शिशु और उसकी माँ दोनों धन्य हैं। वे दोनों एक-दूसरे के साथ और एक-दूसरे से परिचित हैं। जबकि कवि स्वयं लंबी यात्राओं के कारण  

शिशु के लिए पराया-सा हो गया है अर्थात् अतिथि की तरह हो गया है। बच्चे की माँ ही अपने हाथों से पंचामृत यानी मधुपर्क चटाती थी। यहाँ कवि ने शिशु और उसकी माँ के वात्सल्य प्रेम को सुंदरता से दर्शाया है।

(घ) "देखते तुम इधर- बड़ी ही छविमान।"

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक " अंबर भाग-2" के अंतर्गत कवि नागार्जुन जी द्वारा रचित कविता" यह दंतुरित मुसकान" से उद्धृत है।

इन पंक्तियों में कवि और शिशु की आँखों के दृष्टि-मिलन से होनेवाले अतुलित आनंद का सुंदर वर्णन हुआ है। कवि का मानना है कि वह लंबे समय तक शिशु से दूर रहने के कारण अतिथि जैसा बन गया है। कवि बच्चे के संपर्क में नहीं था। इसलिए शिशु को कवि अपरिचित-सा लगता था । शिशु का परिचय केवल अपनी माँ से है।

कवि का कहना है कि शिशु उन्हें कनखियों से यानी टेढ़ी नजरों से ऐसे निहार रहा है, मानो पूछ रहा है कि अब तक कहाँ थे ? टेढ़ी नजरों से देखकर उन्हें पहचानने की कोशिश करता और कवि से आँखें मिलते ही वह मुसकुरा उठता है। उसके नए दाँतों की झलक व मुसकराहट को देखकर कवि मोहित हो गए। उनका हृदय वात्सल्यता से भर गया।

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