Ambar Bhag 2 Chapter-7 नमक का दारोगा Question Answer'2023 | SEBA CLASS 10 | The Treasure Notes

In this page we have provided Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter- 7 नमक का दारोगा Solutions according to the latest SEBA syllabus....

 

Ambar Bhag 2 Chapter-7 नमक का दारोगा Question Answer'2023 | SEBA CLASS 10 | The Treasure Notes
AMBAR BHAG 2 CHAPTER- 7 Namak Ka Daroga

SEBA HSLC CLASS 10 (Ambar Bhag 2) Chapter-7  नमक का दारोगा

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कक्षा 10 हिंदी (अंबर भाग 2) अध्याय-7 नमक का दारोगा

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

■ बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन कीजिए:

( क ) पढ़ाई समाप्त करने के बाद मुंशी वंशीधर किस पद पर नियुक्त हुए ?

(i) नमक का दारोगा।          (ii) कांस्टेबल

(iii) मैनेजर                       (iv) न्यायाधीश

उत्तर: (i) नमक का दारोगा

(ख) पंडित अलोपीदीन थे दातागंज के प्रतिष्ठित―

(i) व्यक्ति              (ii) ज़मींदार

(iii) दारोगा             (iv) न्यायाधीश

उत्तर: (ii) ज़मींदार

(ग) अदालत में पंडित अलोपीदीन को देखकर लोग इसलिए विस्मित नहीं थे कि उन्होंने क्यों यह कार्य किया बल्कि इसलिए कि –

(i) अलोपीदीन ने भारी अपराध किया था। 

(ii) उन्होंने मुंशी वंशीधर को घूस देने की कोशिश की थी।

(iii) वह कानून के पंजे में कैसे आए।

(iv) उपर्युक्त सभी कथन सही हैं। 

उत्तर: (ii) वह कानून के पंजे में कैसे आए।

(घ) कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का नियुक्त किया –

(i) मालिक                (ii) स्थायी मैनेजर

(ii) वारिस                 (iv) हिस्सेदार

उत्तर: (ii) स्थायी मैनेजर

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2. अत्यंत संक्षेप में उत्तर दीजिए:

(क) लोग नमक का चोरी-छिपे व्यापार क्यों करने लगे ?

 उत्तर: लोग नमक का चोरी-छिपे व्यापार इसलिए करने लगे क्योंकि देश की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के नमक विभाग ने ईश्वरप्रदत्त नमक के मुक्त व्यवहार पर प्रतिबंध लगा दिया था।

(ख) पहले किस प्रकार की शिक्षा पाकर लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे ?

 उत्तर: पहले न्याय और विद्वत्ता की लंबी-चौड़ी उपाधियाँ पाकर लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे। 

(ग) किन गुणों के कारण मुंशी वंशीधर ने अफ़सरों को मोहित कर लिया था ? 

उत्तर: अपनी कार्यकुशलता और उत्तम आचार के कारण मुंशी वंशीधर ने अफ़सरों को मोहित कर लिया था।

(घ) नमक के दफ़्तर से मील भर पूर्व कौन-सी नदी बहती थी ? 

उत्तरः नमक के दफ्तर से मील भर पूर्व यमुना नदी बहती थी।

(ङ) वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में क्यों लिया ?

 उत्तर: वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में इसलिए लिया क्योंकि उन्होंने यमुना नदी के तट पर कुछ आदमियों को पंडित अलोपीदीन की गाड़ियों के साथ व्यापार के लिए अवैध रूप से नमक ले जाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था।

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3।संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) जब मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकले तो उनके पिता जी ने क्या उपदेश दिया ?

उत्तर: जब मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकले तो उनके पिता जी ने नौकरी में केवल मासिक आय वाले प्रतिष्ठित पद के बजाय ऊपरी आय वाले पद पर ध्यान देने का उपदेश दिया। उन्होंने अपना आशय उपमा के माध्यम से स्पष्ट करते हुए समझाया कि “बेटा! मासिक आय तो पूर्णवासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। “

(ख) गिरफ्तारी से बचने के लिए पं. अलोपीदीन ने वंशीधर को किस प्रकार रिश्वत देने की पेशकश की ?

उत्तर: पंडित अलोपीदीन को पैसे की ताकत पर अखण्ड विश्वास था। वे पैसे के बल पर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते थे। इसी विश्वास के बल पर उन्होंने मुंशी वंशीधर को भी खरीदना चाहा। उन्होंने पहले एक हजार रुपये देने की पेशकश की। फिर पाँच, दस, पंद्रह और बीस हजार तक पहुँच गए। लेकिन वंशीधर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब पंडित अलोपीदीन के विश्वास को पहली बार धक्का लगा और उन्होंने अत्यंत दीन भाव से इस मामले को निपटाने हेतु एक बार फिर कोशिश की। बीस से पच्चीस, पच्चीस से तीस और अन्त में चालीस हजार तक देने की लालच दी परन्तु वंशीधर अपने स्थान पर पर्वत की तरह अविचलित खड़े रहे। 

(ग) यमुना तट पर मुंशी वंशीधर और पं. अलोपीदीन के बीच हुई बातचीत का वर्णन कीजिए।

उत्तर: यमुना तट पर मुंशी वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन की नमक की बोरियों से लदी हुईं गाड़ियों को रोक दिया और उनके पास बुलावा भेजा। तब पंडित अलोपीदीन एक रईस की तरह लिहाफ ओढ़े और मुँह में पान चबाते हुए उनके पास आए और ‘बाबू जी आशीर्वाद’ कहकर अत्यंत विनम्र भाव से गाड़ियों के रोके जाने का कारण पूछा। इस पर वंशीधर ने अपने पद की गरिमा के हैसियत से रुखाई स्वर में सरकारी हुक्म को कारण बताया। तब पंडित अलोपीदीन ने अपनापन दिखाकर इसे घर का मामला कहा और अन्य अधिकारियों की भाँति भेंट स्वरूप रिश्वत की पेशकश की। परन्तु इन बातों से अप्रभावित मुंशी वंशीधर ने कड़े शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए। कहा- ‘हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं।”

जब पंडित अलोपीदीन को किसी भी तरह से अपनी दाल गलती हुई नहीं दिखाई दी तो बहुत ही दीन-भाव से अपनी इज्जत का वास्ता देकर स्वयं को हिरासत में नहीं लेने का आग्रह किया। किन्तु वंशीधर ने कठोर स्वर में ऐसी बातें सुनने से मना कर दिया।

Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-7 नमक का दारोगा

परन्तु अभी भी पंडित अलोपीदीन को अपनी धन की शक्ति पर पूरा विश्वास था। जब किसी भी तरह की बातों से काम नहीं बना तो रिश्वत का सहारा लेते हुए एक हजार रुपये की पेशकश की। इस पर वंशीधर ने दृढ़ता से कहा- ‘एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते।’ इसके बाद हर आग्रह के साथ रिश्वत की राशि बढ़ती चली गई और बीस हजार तक पहुँच गई। लेकिन वंशीधर का जवाब पूर्ववत् था ।

अब पंडित अलोपीदीन निराश हो चले थे और अत्यंत दीनता से ईश्वर का वास्ता देकर दया की भीख माँगते हुए पच्चीस हजार पर निपटारा करने की बात कही। तो मुंशी वंशीधर ने इसे असंभव कहकर उनकी प्रार्थना को निर्दयतापूर्वक ठुकरा दिया। एक बार फिर पंडित जी ने हिम्मत दिखाई और तीस हजार तक पहुँचे। परन्तु वंशीधर ने कहा कि किसी भी तरह संभव नहीं है। अन्त में पंडित अलोपीदीन ने अपनी सारी शक्ति बटोर कर पूछा ‘क्या चालीस हजार भी ‘नहीं?’ तो वंशीधर ने स्पष्ट शब्दों में कहा–’चालीस हजार नहीं, चालीस लाख पर भी असंभव है।’

(घ) डिप्टी मजिस्ट्रेट ने क्या फैसला सुनाया ?

उत्तर: डिप्टी मजिस्ट्रेट ने यह फैसला सुनाया कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए प्रमाण निर्मूल और भ्रमात्मक हैं। वे एक बड़े व्यापारी हैं और मामूली से लाभ के लिए ऐसा काम नहीं करेंगे। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए यह भी कहा कि दारोगा मुंशी वंशीधर की विचारहीनता के कारण पंडित अलोपीदीन जैसे • भले-मानुस को कष्ट उठाना पड़ा। हालांकि वंशीधर का काम के प्रति सजगता और सावधानी प्रशंसनीय है, लेकिन उनकी वफादारी ने उनके विवेक और बुद्धि को दूषित कर दिया है। इसलिए उन्हें भविष्य में होशियार रहने की सलाह दी जाती है।

(ङ) नौकरी से निकाले जाने पर वंशीधर के परिवारवालों की क्या प्रतिक्रिया रही ?

उत्तर: नौकरी से निकाले जाने पर वंशीधर के परिवारवालों की प्रतिक्रिया बहुत नकारात्मक रही। उनके पिता जी यमुना तट पर पंडित अलोपीदीन के साथ हुई घटना को लेकर काफी दुःखी थे और अन्दर-ही-अन्दर वंशीधर को कोस रहे थे। जब वंशीधर घर पहुँचे और उनको नौकरी से निकाले जाने की खबर सुनी तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। वे अत्यंत गुस्से में बोले- ‘जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ।’ उनकी वृद्ध माता जी को भी काफी दुःख हुआ और उनकी तीर्थयात्रा की कामना अधूरी रह गई।

(च) पं. अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर क्यों बनाया ?

उत्तर: पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से प्रभावित होकर उन्हें अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर बनाया। आमतौर पर किसी व्यक्ति को उच्च पद पर नियुक्त करने से पहले हर दृष्टिकोण से उसकी परीक्षा ली जाती है। पंडित अलोपीदीन को पैसे की ताकत पर अखण्ड विश्वास था और वे इस के बल पर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते थे।

लेकिन वंशीधर उन सबमें अलग नजर आए। यमुना तट पर अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए पंडित अलोपीदीन मुंशी वंशीधर को ऊँची-से-ऊँची रिश्वत का प्रलोभन देकर भी वंशीधर को उनके सच्चे मार्ग से विचलित कर पाने में असफल रहे। और यही कारण है कि कहानी के अन्त में वे स्वयं प्रार्थना पत्र लेकर वंशीधर के घर जाते हैं और उन्हें अपनी सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद के लिए राजी कर लेते हैं।

 (छ) “पं. अलोपीदीन मानवीय गुणों के पारखी थे।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। 

उत्तर: पंडित अलोपीदीन एक अमीर और अनुभवी व्यक्ति थे। उनको लक्ष्मी पर अखण्ड विश्वास था। उन्होंने अनेक उच्च पदाधिकारियों को पैसे के बल पर परास्त किया था और उनको अपने धन का गुलाम बनाकर छोड़ दिया था। किन्तु जब उनका सामना मुंशी वंशीधर जैसे कर्तव्य-निष्ठ, ईमानदार और स्वाभिमानी दारोगा से होता है तब वे पहली बार महसूस करते हैं कि संसार में कुछ ऐसे भी मनुष्य हैं, जो धर्म के नाम पर अपना सब कुछ अर्पित कर, अपनी अलग पहचान बनाते हैं। ऐसे मनुष्य न तो किसी दबाव में आते हैं और न ही किसी प्रलोभन के सामने अपने घुटने टेकते हैं।

उनके लिए परिस्थिति चाहे कैसी भी क्यों न हो, वे हर स्थिति में अपने सच्चे मार्ग पर चट्टान की भाँति अडिग रहते हैं। वंशीधर के उक्त गुणों से प्रभावित होकर ही पंडित अलोपीदीन ने उनको अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया था। अतः कहा जा सकता है कि पंडित अलोपीदीन मानवीय गुणों के पारखी थे।

(ज) मुंशी वंशीधर की चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर: मुंशी वंशीधर एक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। आज्ञाकारिता, आदर्शवादिता, कर्तव्य निष्ठा, कार्यकुशलता, ईमानदारी और त्याग उनके चरित्र की उल्लेखनीय विशेषताएँ थीं। वे एक आज्ञाकारी पुत्र की भाँति पिता से ऊपरी आय का उपदेश तो ग्रहण कर लेते हैं, परन्तु एक आदर्शवादी व्यक्ति की तरह उस उपदेश को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। नमक विभाग में दारोगा के पद पर प्रतिष्ठित होते ही अपनी कार्यकुशलता और उत्तम आचार से सभी अफ़सरों को मोहित कर उनका विश्वासपात्र बन जाते हैं।

यमुना तट पर पंडित अलोपीदीन के हर प्रलोभन का मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपनी कठोर धर्मनिष्ठा और ईमानदारी का परिचय देते हैं। हालांकि वे अदालत में पंडित अलोपीदीन से हार जाते हैं, किन्तु अपने चारित्रिक गुणों की अमिट छाप उनके हृदय पर छोड़ने में सफल हो जाते हैं। मुंशी वंशीधर के चारित्रिक गुणों से प्रभावित होकर ही अंत में पंडित अलोपीदीन उनको अपनी सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद पर नियुक्त करते हैं।

(झ) इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?

उत्तरः इस कहानी से हमें मुंशी वंशीधर की तरह कर्तव्य निष्ठ, ईमानदार और स्वाभिमानी मनुष्य बनने की शिक्षा मिलती है, जो सच्चे मार्ग पर पर्वत की भाँति अविचलित खड़ा रहता है।

Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-7 नमक का दारोगा

4.आशय स्पष्ट कीजिए:

( क ) मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।

उत्तर: उक्त कथन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।

उक्त कथन में लेखक ने वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी जी के माध्यम से मासिक आय और ऊपरी आय की आपस में तुलना कर ऊपरी आय वाले ओहदे को ज्यादा महत्त्व प्रदान करने का प्रयास किया है। उनका आशय यह है कि मासिक आय एक निश्चित राशि है जो महीने की निश्चित अवधि में धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। उससे हम अपनी सभी जरूरतें पूरी नहीं कर सकते हैं। लेकिन ऊपरी आय वाली राशि की कोई सीमा नहीं होती और न ही इसे पाने की कोई निश्चित तारीख। यह किसी भी समय हासिल हो सकती है। इस आय से हम अपनी सभी जरूरतें आराम से पूरी कर सकते हैं।

 (ख) न्याय और नीति सब लक्ष्मी के खिलौने हैं, इन्हें वे जैसा चाहती है, नचाती है।

उत्तरः उक्त कथन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।

 उक्त कथन में लेखक का आशय यह है कि आज पैसा मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है। पैसे के लिए हर व्यक्ति अपना ईमान बेचने के लिए तैयार खड़ा है। मनुष्य की अत्यधिक धन कमाने की प्रवृत्ति ने ही समाज में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी एवं अवैध कारोबार जैसी बुराइयों को जन्म दिया है। पैसे के बल पर न केवल उच्च पदाधिकारी खरीदे जाते हैं बल्कि न्यायाधीशों के फैसले भी बदल दिए जाते हैं। आज हर व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है।

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