Ambar Bhag 2 Chapter-6 आत्म-निर्भरता Question Answer'2023 | SEBA CLASS 10 | The Treasure Notes

In this page we have provided Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-6 आत्म-निर्भरता Solutions according to the latest SEBA syllabus pattern for 2022

Ambar Bhag 2 Chapter-6 आत्म-निर्भरता Question Answer'2023 | SEBA CLASS 10 | The Treasure Notes
AMBAR BHAG 2 CHAPTER- 6 Atmanirbhar

SEBA HSLC CLASS 10 (Ambar Bhag 2) Chapter-6 आत्म-निर्भरता

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कक्षा 10 हिंदी (अंबर भाग 2) अध्याय-6 आत्म-निर्भरता

पाठ्यपुस्तक प्रश्न और उत्तर :


Class 10 Hindi 

(Ambar Bhag 2)

 Chapter-6 आत्म-निर्भरता 


पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर


 बोध एवं विचार


1. सही विकल्प का चयन कीजिए:


(क) किस राजा ने विपत्तियों में भी सत्य का सहारा नहीं छोड़ा ?


(i) राजा हरिश्चंद्र.             (ii) महाराणा प्रताप


(iii) पृथ्वीराज चौहान.        (iv) जयचंद


उत्तर: (i) राजा हरिश्चंद्र

(ख) कौन से कवि जीवन भर विलासी राजाओं के हाथ की कठपुतली बने रहे ?


(i) तुलसीदास.          (ii) कुंभनदास


(iii) केशवदास          (iv) कबीरदास


उत्तर:- (iii) केशवदास

(ग) किस कवि ने अकबर के बुलाने पर फतेहपुर सीकरी जाने से इनकार कर दिया था ?


(i) कबीरदास             (ii) तुलसीदास


(iii) केशवदास            (iv) कुंभनदास


उत्तर:- (iv) कुंभनदास


(घ) अमेरिका की खोज किसने की थी ?


(1) वास्को डिगामा            (ii) कोलंबस


 (iii) हॉकिन्स                   (iv) जॉर्ज वाशिंगटन


उत्तर: (ii) कोलंबस


2.पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए:

(क) आत्म-संस्कार के लिए क्या आवश्यक माना गया है ? 

उत्तरः आत्म-संस्कार के लिए मानसिक स्वतंत्रता को आवश्यक माना गया है।

(ख) युवाओं को सदा क्या स्मरण रखना चाहिए ?

उत्तर: युवाओं को सदा यह स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है तथा उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं।

(ग) लेखक ने सच्ची आत्मा किसे माना है ?

उत्तर: लेखक ने सच्ची आत्मा उसे माना है, जो विषम परिस्थितियों में भी हमारा सही मार्गदर्शन करती है।

(घ) ‘मोको कहाँ सीकरी सो काम।’ यह किसका कथन है ?

उत्तर: ‘मोको कहाँ सीकरी सो काम’ यह कुंभनदास का कथन है।

(ङ) एकलव्य कौन था ?

उत्तरः एकलव्य भील जाति का एक नवयुवक था, जो अपने बल पर एक बड़ा धनुर्धर हुआ था। वह द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान लिया था। 

(च) शिवाजी ने मराठी सिपाहियों के सहारे किसकी सेना को तितर-बितर कर दिया था ? 


उत्तरः शिवाजी ने मराठा सिपाहियों के सहारे औरंगजेब की सेना को तितर-बितर कर दिया था।

(छ) आत्म-मर्यादा के लिए कौन-सी बातें आवश्यक हैं ? 

उत्तरः आत्म-मर्यादा के लिए कोमलता, विनम्रता, मानसिक स्वतंत्रता एवं आत्म 


3.संक्षिप्त उत्तर दीजिए:


( क ) ‘नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन नहीं है।’ यहाँ लेखक ने दब्बूपन के क्या लक्षण बताए हैं ? 

उत्तर: दब्बूपन मनुष्य की कमजोरी होती है, जिससे वह बात बात पर दूसरे से दबता रहता है। उसका संकल्प क्षीण हो जाता है और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है जिसके कारण वह आगे बढ़ने के समय पीछे हटता रहता है। वह झटपट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता।

(ख) मर्यादापूर्वक जीवन बिताने के लिए कौन-से गुण अवश्यक हैं ? 

उत्तरः मर्यादापूर्वक जीवन बिताने के लिए मनुष्य का आदर्शवान बनना आवश्यक है। इन आदर्शों (गुणों) में मानसिक स्वतंत्रता के साथ-साथ स्वाभिमान एवं विनम्रता जैसे गुणों की आवश्यकता है। ये सभी गुण एक साथ आत्म-निर्भरता के अंतर्गत समाहित होते हैं।

(ग) राजा हरिश्चंद्र की प्रतिज्ञा क्या थी ? 

उत्तर: राजा हरिश्चंद्र प्राचीन भारत के महान और सत्यवादी राजा थे। उनके जीवन में अनेक संकट आए परन्तु वे सत्य के मार्ग से विचलित नहीं हुए। उनकी यही प्रतिज्ञा रही कि ‘चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार, पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र कौ, टरै न सत्य विचार।’

(घ) महाराणा प्रताप ने दूसरे की अधीनता स्वीकार करने के बजाए कष्ट झेलना मुनासिब क्यों समझा ?

उत्तरः महाराणा प्रताप एक बहादुर योद्धा एवं आत्मनिर्भर पुरुष थे। उनमें स्वाभिमान, देशप्रेम एवं समर्पण की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वे मरते दम तक अपनी मातृभूमि को बचाना चाहते थे। उन्हें स्वतंत्रता प्यारी थी। इसलिए उन्होंने मुगलों की अधीनता के बजाए कष्ट झेलना स्वीकार किया।

(ङ) ‘अब तेरा किला कहाँ है ?’- यह प्रश्न किसने किससे किया था तथा इसका उत्तर क्या मिला ? 

उत्तर: ‘अब तेरा किला कहाँ है?’ यह प्रश्न बलवाइयों ने एक रोमन राजनीतिक से पूछा था। रोमन राजनीतिक ने अपने हृदय पर हाथ रखकर इस प्रश्न का उत्तर दिया था। उसने कहा- ‘यहाँ’ अर्थात् संकट के समय मनुष्य का हृदय ही भारी गढ़ या आश्रय स्थल होता है, जो उचित-अनुचित का ज्ञान कराता है। यह संकट के समय हमारा सही मार्गदर्शन भी कराता है जिससे बगैर घबराए मनुष्य मुसीबत का सामना करता है।

(च) किस प्रकार का व्यक्ति आत्म-संस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकता ?

उत्तर: जो व्यक्ति अपने आप पर विश्वास न करके हर काम में दूसरों का सहारा चाहता है, जो अपना अधिकार दूसरे के हाथों में सौंप देता है और हमेशा एक नया अगुवा ढूँढ़ा करता है, वह आत्म संस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकता।

(छ) लेखक तुलसीदास एवं केशवदास की तुलना द्वारा क्या साबित करना चाहते हैं ?

उत्तर: गोस्वामी तुलसीदास और केशवदास भारतीय हिंदी साहित्य के समकालीन (भक्तिकाल) कवि थे। तुलसीदास मानसिक स्वतंत्रता, निद्वंद्वता और आत्म निर्भरता के कारण विश्वप्रसिद्ध कवि बने। उन्हें हिंदी साहित्य जगत का ‘शशि’ माना जाता है। दूसरी ओर केशवदास स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सके और जीवन भर विलासी राजाओं के दरबारी कवि बने रहे। उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। यहाँ लेखक के कहने का विशेष अर्थ यह है कि बगैर आत्म निर्भरता के कोई भी उन्नति नहीं कर सकता।

(ज) मनुष्य और दास में क्या अंतर है? पठित पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तरः मनुष्य आत्मनिर्भर होता है। वह अपना निर्णय स्वयं लेता है। वह किसी के आदेश से नहीं चलता। वह कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र होता है। परंतु दास अपनी मर्जी का मालिक नहीं होता। वह दूसरे के अधीन होता है। वह स्वतंत्र नहीं होता। उसे अपने मालिक के आदेशों पर चलना होता है। मनुष्य और दास में यही अंतर है।

(झ) चित्त-वृत्ति की महत्ता को दर्शाने के लिए लेखक ने क्या-क्या उदाहरण दिए हैं?

उत्तर: चित्त-वृत्ति की महत्ता को दर्शाने के लिए लेखक ने कई उदाहरण दिए हैं। जैसे- राजा हरिश्चंद्र सत्य के सहारे संकटों से छुटकारा प्राप्त किए। महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। राम-लक्ष्मण ने बड़े-बड़े पराक्रमी वीरों पर विजय प्राप्त की हनुमान ने अकेले सीता की खोज की। शिवाजी ने थोड़े से सिपाहियों की सहायता से औरंगजेब की सेना को तितर बितर कर दिया।

(ञ) उपन्यासकार स्कॉट किस मुसीबत में फँसे और इससे उन्हें छुटकारा मिला ?


उत्तर: सर वाल्टर स्कॉट स्कॉटलैण्ड के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि, नाटककार और इतिहासकार थे। इवानहो, रोब रॉय, ओल्ड मोर्टेलिटी, द लेडी ऑफ द लेक, द हर्ट ऑफ मिडलोथियन आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। वे एक बार ऋण के बोझ से बिलकुल दब गए। मित्रों ने उनकी सहायता करनी चाही। पर उन्होंने अपने मित्रों की सहायता नहीं ली और प्रतिभा का सहारा लेकर कम समय में अनेक बेहतरीन उपन्यास लिखकर लाखों रुपये का ऋण अपने सिर से उतार दिया।


4.सम्यक् उत्तर दीजिए:.

( क ) लेखक ने महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र के उदाहरण के माध्यम से क्या समझाना चाहा है ?

उत्तर: महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी पुरुष थे। ये दोनों दृढ़ संकल्प वाले चरित्रवान व्यक्ति थे। लोक कल्याण की भावना इनमें कूट-कूटकर भरी थी। इन्होंने आत्मा के विरुद्ध कभी कोई काम नहीं किया। राजा हरिश्चंद्र के ऊपर कई विपत्तियाँ आईं। उनका राजपाट चला गया,कंगाल हो गए। परिस्थितिवश उन्हें श्मशान का चांडाल बनना पड़ा तथा मृतकों के परिजनों से शवदास्य-क्रिया के निमित्त कर वसूलने का काम करना पड़ा। स्त्री-बच्चे को अन्य के हाथ बिकना पड़ा। परंतु कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सत्य का सहारा नहीं छोड़ा। महाराणा प्रताप जंगल-जंगल मारे-मारे फिरे। स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते हुए देखते थे। परंतु मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। वे जानते थे कि अपने मर्यादा की चिंता जितनी अपने को हो सकती है, उतनी दूसरे को नहीं।


वस्तुतः ये दोनों आत्म-संस्कारी पुरुष थे। राजा हरिश्चंद्र सत्य का सहारा छोड़कर स्वार्थपूर्ति की बात करते तो इतिहास में हमें इतना उत्तम और सार्थक उदाहरण नहीं मिलता। महाराणा प्रताप यदि मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेते तो उन्हें गद्दार की श्रेणी में रखा जाता। उन्होंने हमारे सामने उच्च कोटि के देशप्रेम एवं समर्पण भाव को प्रस्तुत किया। हम उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं और गर्व करते हैं।

(ख) पाठ में आए कुछ आत्म-निर्भरशील व्यक्तियों के बारे में बताइए। 


उत्तर: ‘आत्म-निर्भरता’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित बेहद प्रेरणादायक निबंध है। प्रस्तुत पाठ में विद्वान लेखक ने अनेक आत्मनिर्भरशील व्यक्तियों का उदाहरण दिया है। महाराणा प्रताप, राजा हरिश्चंद्र, तुलसीदास, कुंभनदास, राम लक्ष्मण, हनुमान, क्रिस्टोफर कोलंबस, वीर शिवाजी, सर वाल्टर स्कॉट आदि ऐसे ही आत्मनिर्भरशील व्यक्ति थे।


राजा हरिश्चंद्र- हरिश्चंद्र त्रेता युग के सत्यवादी राजा थे। एक ब्राह्मण ऋषि को इन्होंने अपना संपूर्ण राज-पाट दान कर दिया। तत्पश्चात् आजीविका के लिए इन्हें काशी में गंगा के किनारे एक चांडाल के हाथों बिकना पड़ा तथा श्मशान की देखरेख और वहाँ शव जलाने वालों से शुल्क वसूलने का काम करना पड़ा। स्त्री और बच्चे भी किसी ब्राह्मण के यहाँ नौकरी करने लगे। दुर्भाग्य से फूलवाड़ी से फूल तोड़ते समय इनके बेटे को साँप ने डँस लिया और वह मर गया। उनकी पत्नी उसी श्मशान में अपने बेटे का शव जलाने ले आई। उससे भी हरिश्चंद्र को शुल्क लेकर लाश जलाने की अनुमति देनी पड़ी। इतनी विपत्तियों का सामना करते हुए उन्होंने सत्य के मार्ग से अपना कदम नहीं हटाया। 

महाराणा प्रताप


महाराणा प्रताप- महाराणा प्रताप का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप ने कई बार मुगलों को युद्ध में हराया था। उनका जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवंता बाई के घर में हुआ था। उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व किया था।

गोस्वामी तुलसीदास


गोस्वामी तुलसीदास- राम भक्ति की शीतल चाँदनी बिखेरने वाले लोकनायक महाकवि तुलसीदास हिंदी साहित्य जगत के ‘शशि’ कहलाते हैं। इन्होंने लगभग एक दर्जन काव्यग्रंथों की रचना की है। इनकी सभी रचनाएँ विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। ‘रामचरितमानस’ इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। केशवदास आचार्य केशवदास हिंदी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल हुआ था। केशवदास ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि, मंत्री और गुरु थे।

हनुमान


हनुमान – पवनपुत्र हनुमान श्रीरामचन्द्र के सखा थे। इन्होंने श्रीराम की बड़ी सेवा की थी। हनुमान बहुत बलशाली थे। जब लंकापति रावण सीता मइया का अपहरण करके लंका ले गया था तो श्रीराम ने अतुलित बलशाला हनुमान को सीता का पता लगाने के लिए लंका भेजा था ।


राम-लक्ष्मण – राम और लक्ष्मण अयोध्यापति दशरथ के पुत्र थे। अपने पिताश्री की आज्ञा से जब राम को चौदह वर्ष का वनवास मिला तो वे अपनी भार्या सीता और लक्ष्मण को भी वन ले गए। उन्होंने पंचवटी में अपना आश्रय बनाया। उसके आस-पास अनेक पराक्रमी राक्षसों का आतंक था। वे सभी तपस्चर्या में लीन ऋषि-मुनियों को बहुत तंग करते थे। राम-लक्ष्मण ने मिलकर उन पराक्रमी राक्षसों का नाश किया। फिर लंका में जाकर रावण और उसके परिजनों का संहार किया।

कुंभनदास


कुंभनदास- कुंभनदास (1468-1583) अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि थे। ये परमानंददास जी के समकालीन थे। कुंभनदास ब्रज में गोवर्धन पर्वत से कुछ दूर ‘जमुनावतौ’ नामक गाँव में रहा करते थे। अपने गाँव से वे पारसौली चंद्रसरोवर होकर श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तन करने जाते थे। उन्होंने महाप्रभु बल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी।


वीर शिवाजी- छत्रपति शिवाजी भारत के राजा और रणनीतिकार थे, जिन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। स्वतंत्रता सेनानियों ने इन जीवनचरित से अनुप्रेरित हुए थे। शिवाजी एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाने जाते है।


उपन्यासकार स्कॉट- इनका पूरा नाम सर वाल्टर स्कॉट था। इनका जन्म स्कॉटलैण्ड में हुआ था। ये एक ही साथ उच्च कोटि के कवि, इतिहासकार, उपन्यासकार तथा नाटककार भी थे। इवानहो, रॉब रॉय, ओल्ड मोर्टेलिटी, द लेडी ऑफ द लेक, द हर्ट ऑफ मिडलोथियन आदि इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। 


(ग) आत्म-निर्भरता के लिए कौन-कौन से गुण अनिवार्य हैं? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तरः आत्म निर्भरता मनुष्य का सर्वोपरि गुण है। जो लोग अपना कार्य स्वयं करते हैं, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करते हैं, जरूरत पड़ने पर अपना निर्णय स्वयं लेते हैं उन्हें आत्मनिर्भर व्यक्ति कहा जाता है। आत्म-निर्भरता को स्वावलंबन भी कहते हैं। यह वह गुण है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों के बल खड़ा होता है।


आत्म-निर्भरता के लिए अनेक गुण अनिवार्य हैं। हालाँकि जो लोग आत्मनिर्भर होते हैं, उन्हें अन्य गुणों की आवश्यकता नहीं होती। सभी गुण आत्म-निर्भरता में ही समाहित होते हैं। इसके लिए आत्म-संस्कार, मानसिक स्वतंत्रता, स्वाभिमान, हृदय की उदारता, परोपकारिता, विनम्रता, कृतज्ञता आदि की आवश्यकता पड़ती है। वस्तुतः आत्म निर्भरता अपने आप में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी गुण है। जो आत्मनिर्भर होते हैं- उनमें ये सभी गुण अनायास आ जाते हैं। आत्मनिर्भर व्यक्ति अकेले दम पर आगे बढ़ता रहता है। वह कभी दूसरे के पीछे नहीं चलता। ऐसे व्यक्ति दृढ़ चित्तवृति के होते हैं तथा अपने विचार एवं निर्णय की स्वतंत्रता को दृढ़तापूर्वक बनाए रखते हैं।


5.सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

( क ) मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर लगाए। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। स्वावलंबन के महत्व को दर्शाते हुए शुक्ल जी ने लोगों को यह समझाने का प्रयास किया है कि अपने कर्मों से ही व्यक्ति का विकास या पतन हो सकता है। वस्तुतः मनुष्य अपने जीवन में जो भी कर्म करता है, उसका उत्तरदायी स्वयं होता है। हमारे कामों से ही हमारी रक्षा और हमारा पतन होगा।

एक आत्मनिर्भर व्यक्ति सही निर्णय लेता है, सही मार्ग अपनाता है और सही कार्य करता है। सभी जीवन रूपी नौका (बेड़ा) पर सवार हैं। अब उनके ऊपर है कि वे किस प्रकार अपनी नौका को किनारे लाते हैं अथवा मझधार में ही अटक जाते हैं। व्यक्ति कर्म से ही महान बनता है और कर्म से ही बदनाम भी होता है। अतः निर्णय अपने हाथ में है और जीवन रूपी नौका का पतवार भी अपने ही हाथ में है। यह आपके ऊपर है कि आप विकास का रास्ता अपनाते हैं अथवा पतन का ।

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

(ख) सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ है। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। आत्म निर्भरता के महत्व को दर्शाते हुए विद्वान लेखक ने हमें यह समझाने का प्रयास किया है कि सही निर्णय लेने वाला व्यक्ति हमेशा सही मार्ग पर चलता है।


आत्मा हमारी बुद्धि और विवेक की पराकाष्ठा का नाम है। मनुष्य का मन चंचल होता है और संकट के समय यह विचलित भी हो सकता है। परन्तु आत्मा सदैव हमारा उचित और सही मार्गदर्शन करती है। जब हम संकट में होते हैं, कठिन परिस्थिति में भी हमारी आत्मा सच्ची सलाह देती है। और हम सही निर्णय लेकर साहस के साथ आगे बढ़ते हैं। हमें सफलता मिलती है। अर्थात् आत्मनिर्भरशील व्यक्ति विपत्ति में भी एक समान रहते हैं। वे अपना धैर्य नहीं खोते और अपने कार्य में सफल होते हैं।


(ग) जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ही ऊपर रखता है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।


उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध’आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ है। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।


आत्म-निर्भरता की महत्ता बताते हुए विद्वान लेखक यह बताना चाहते हैं कि ऊँची सोच और विचार रखने वाला व्यक्ति ही समाज का ऊँचा या महान व्यक्ति होता है। लेखक का मानना है कि दृढ़ निश्चय वाला उच्चाशय और विनम्र व्यक्ति ही अपने लक्ष्य में सफल होता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना जीवन लक्ष्य होता है। वह उसी अनुरूप कार्य करता है। जिसका लक्ष्य जितना महान होता है वह जीवन में उतना ही सफल व्यक्ति माना जाता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा कुछ बड़ा और महान सोचना चाहिए। तीरंदाज अपने लक्ष्य को जितना साधता है उतना ही वह अपने लक्ष्य को बेध सकता है। यहाँ लेखक ने हमें अपना लक्ष्य बड़ा रखने का संदेश दिया है।

(घ) मैं राह ढूँढूँगा या राह निकालूँगा। 

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध’ आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ है। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। साहसी और आत्मनिर्भर व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए विद्वान लेखक ने यह दर्शाना चाहा है कि ऐसे व्यक्ति संकट के समय अथवा विषम परिस्थिति में भी ‘अपना मार्ग स्वयं तलाश लेता है। जो आत्मनिर्भर व्यक्ति होते हैं, वे बगैर संगी साथी के अकेले दम पर अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं।

वे अपने ऊपर आने वाली विपत्तियों की परवाह नहीं करते। अथवा वे संकटों से नहीं घबराते या न अपने मार्ग से ही विचलित होते हैं। लेखक का कहने का विशेष मतलब यह है कि जिस व्यक्ति में आत्म निर्भरता का गुण होता है, वह हमेशा सही मार्ग पर एवं सही दिशा में अपना कदम बढ़ाता है और दुर्गम जगहों में भी मार्ग की खोज कर लेता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को यही संकल्प लेना चाहिए कि संकट के समय या कठिन स्थितियों में भी मैं अपना राह स्वयं निकालूँगा। यहाँ लेखक ने हमें आत्मनिर्भरशील व्यक्ति की दृढ़ता को दिखाया है।


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