AHSEC Class 12 Advance Hindi Solution
[Adv. Hindi Chapter: 1 Bharat Mahima]
भारत-महिमा
-जयशंकर प्रसाद
1. 'हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दें उपहार । उषा ने हँस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरक हार ।। जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक । व्योम-तम-पूँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक ।।'
शब्दार्थ :- उषा प्रातः, अभिनन्दन प्रणाम स्वागत, हीरक हीरा का, हार माला, लोक विश्व, आलोक प्रकाश, व्योम वेर, अखिल विश्व, संसृति संस्कृति - नाम । आकाश, तम अंधकार, पूँज भंडार -
अर्थ प्रातः काल की धवल किरणें सर्वप्रथम भारतभूमि के आँगन, हिमालय पर्वत पर गिरती हैं। प्रातः बेला मुसकरा उठती है, किरणों के रुप में वह हिमालय को इस प्रकार जगमगा देती है, मानो उसने इसे हीरे की माला पहना दी हो। हम भारतवासी इन स्निग्ध किरणों के पड़ते ही नींद से जग जाते हैं और सारे विश्व को यह संदेश देते हैं कि अब जग जाओ, सबेरा हो गया है और सारी दुनिया प्रकाश से आलोकित हो उठती है। आकाश का पूँजीभूत अंधकार मिट जाता है, सारे विश्व में अशोक द्वारा फैलाए गए धर्म का ज्ञान फैलता है और लोग मूढ़ता त्यागकर धर्म का ज्ञान प्राप्त करते हैं, उनके अन्दर का अंधकार नष्ट हो जाता है।
2.विमल वाणी ने वीणा ली कमल-कोमल कर में सप्रीत। सप्त स्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।। बचा कर बीज रुप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत। अरुण-केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।।'
शब्दार्थ :- विमल पवित्र, वाणी सरस्वती, कमल-कोमल कमल के फूल जैसा मुलायम, सप्रीत प्रेम के साथ, सप्त स्वर समुद्र, साम सामवेद, सृष्टि मनुष्य, प्रलय सात स्वर (सा रे ग....), सप्त सिंधु सातो नाश, अभित निर्भिक निडर।
अर्थ: सरस्वती ने अपने कमल के फूल सरीखे मुलायम हाथों में वीणा धारण किया और उनकी वीणा के तार झंकृत हो उठे जिससे संगीत के सातो स्वर फूट पड़े और सारे विश्व में बिखरे। परिणामतः हमारे यहाँ संगीत से लबालब भरा सामवेद की रचना हुई। प्रलयकाल में जब सारा विश्व मृत्यु के आगोश में समा गया तब हमने सृष्टि के बीज को मनु और शतरुपा के रुप में बचाया जो प्रलय के ठंड में नाव पर तैरते रहे और सूर्य का सा तपा-तपाया शरीर लेकर सागर के असीमित रास्ते पर निडर होकर बढ़ते चले गए।
3.'सुना है दधीचि का वह त्याग हमारी जातीयता विकास । पुरन्दर ने पवि से है लिखा अस्थि-युग का मेरे इतिहास ।। सिंधु सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह । दे रही अभी दिखायी भग्न मग्न रत्नाकर में वह राह।।'
शब्दार्थ :- दधीचि - ऋषि (जिन्होंने अपनी अस्थियों का दान, राक्षसों का नाश करने के लिए किया), जातीयता - जाति का, उत्थान - विकास, पुरन्दर • इन्द्र, पविश वज्र, निर्वासित - रत्नाकर सागर । • घर से निकाला गया (राम), उत्साह साहस, भग्न टूटा-फूटा,
अर्थ - भारतभूमि पर दधीचि जैसे त्यागी पुरुष हुए, जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए तथा राक्षसों (वृत्रासूर) का नाश करने के लिए अपना प्राण त्यागकर अस्थियों का दान दिया। इन अस्थियों से इन्द्र ने बज्र जैसा हथियार तैयार कराया और उससे राक्षसों का नाश किया। इन्द्र का बज्र हमारे अस्थि-युग की कहानी कहता है, प्रमाण देता है। उत्साह और साहस से भरे, घर से निष्कासित हमारे पूर्वज पुरुषोत्तम रामचन्द्र को देखकर कौन गौरवान्चित नहीं होगा ! इस निर्वासित राजकुमार द्वारा सागर में निर्मित पत्थर का पुल आज भी टूटी-फूटी अवस्था में श्वेतवान रामेश्वरम में देखा जा सकता है जो हमारे पूर्व पुरुषों के कृतित्व का प्रमाण है।
4. 'धर्म का ले ले कर जो नाम हुआ करती बलि कर दी बंद। हमी ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनन्द ।। विजय केवल लोहे की नहीं धर्म की रही धरा पर धूम ।भिक्षु होकर रहते सम्राट दया दिखलाते घर-घर घूम।।'
शब्दार्थ :- बलि - बलिदान चढ़ाना - पशुओं और मनुष्य की हत्या, आनन्द - बुद्ध, लोहे हथियार, धरा पृथ्वी, घूम प्रचार-प्रसार ख्याति, सम्राट राजा (अशोक)।
अर्थ : धर्म के नाम पर जो पशु और नर हत्यायें होती थीं, उसे हमने बंद कर दिया और सारे विश्व को शांति का संदेश दिया, शांति का पाठ पढ़ाया और इसे देखकर हमारे धार्मिक प्रवर्तक महात्मा बुद्ध को प्रसन्नता होती थी। हमारे देश में सिर्फ वीरता और हथियारों की ही पूजा नहीं होती बल्कि हमने सारे विश्व में धर्म का प्रचार-प्रसार किया और शांति का संदेश दिया (सम्राट अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विदेशों में भेजा था)। हमारे राजा ऐशो-आराम का जीवन त्यागकर एक भिखारी का जीवन गुजारते थे (सम्राट अशोक) और घर-घर में स्वयं जाकर लोगों के दुख दर्द को सुनते थे और उनका दुख दूर करते थे।
5. 'यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि।
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न शील की सिंहल को भी सृष्टि ।। किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं। हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आये थे नहीं।।
शब्दार्थ: यवन: यूनान वासी, सिंहल: लंका, पालना : धरोहर -स्थान ।
अर्थ : हमने यूनानियों पर दया दिखाई (सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को चन्दगुप्त ने पराजित कर छोड़ दिया धा), हमने चीन देश में बौद्ध धर्म का संदेश पहुँचाया, सुमात्रा ने तीन रत्न के रुप में बुद्ध, धम्म और संघ प्राप्त किया, हमने लंका में भी धर्म का संदेश पहुंचाया। हम भारतीयों ने किसी देश का कुछ भी अपहृत नहीं किया, किसी का कुछ भी नहीं लुटा, प्रकृति सदा इस भारतभूमि पर मेहरबान रही और इसे धन-धान्य से परिपूरित करती रही। हम आर्य किसी अन्य देश से आकर इस भारतभूमि पर नहीं बसे थे बल्कि हम तो यही के निवासी आदिकाल से रहे हैं, यह धरती हमारी माँ है।
6.जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर ।
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर ।।
चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा सम्पन्न ।
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न ।।'
शब्दार्थ :- प्रचंड भयंकर, समीर आँधी, पले हुए बचे हुए, पूत पवित्र,
नम्रता सौम्यता शीलता, विपन्न विपत्ति का मारा दुखी।
अर्थ : हमारे देश पर अनेक जातियों का हमला हुआ, तरह-तरह के विकास और पतन हमने देखा, अनेक प्रकार से हमें सताया गया परन्तु हम हर कठिनाई और मुसीबत में अडिग रहे, क्योंकि हमने तो प्रलय देखा था और उस विनाशलीला में भी बच रहे थे। हमारा चरित्र पवित्र रहा है, हमारी भुजाओं में अजस्त्र बल रहा है और व्यवहार में हम भारतवासी सदा उदार और नम्र रहे हैं। हमने अपने हृदय में, अपने उन्नत विचार को बनाये रखा, अपनी ताकत का गौरव बनाए रखा और किसी को भी दुखी नहीं देख सके, सबकी मदद किया।
7 . 'हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव । वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव ।।
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान ।
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान ।।'
शब्दार्थ : संचय संग्रह, अतिथि मेहमान, देव : देवता, टेव: अडिग-दृढ़ता, दिव्य: शक्तिशाली प्रभावशाली ।
अर्थ : हम जो भी अर्जन करते थे उसमें से गरीबों और ब्राह्मणों को दान दिया करते थे। हमारे यहाँ का स्वागत-सत्कार देखकर देवतागण हमारे मेहमान बनकर रहते थे। हम सत्यवादी थे, हृदय में शक्ति की पूँज थी और हमारी प्रतिज्ञा में दृढ़ता (भीष्म पितामह) होती थी। आज भी हमारे शरीर में हमारे पूर्व पुरुषों का ही लहू बहता है, हमारा देश भारत, आज भी प्राचीन भारत ही है। हममें पहले जैसा ही धौर्य और साहस है और हम आज भी उसी शांति के मार्ग पर चल रहे हैं। हममें अपने पूर्वजों जैसा ही बल है, हम वही देदीप्यमान आर्यों के वंशज हैं।
8. 'जियें तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष। निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।'
शब्दार्थ : अभिमान: गौरव, हर्ष: प्रसन्नता, निछावर : न्योछावर- अर्पण, सर्वस्व : सबकुछ।
अर्थ: हम अपनी मातृभूमि भारत के लिए ही जिन्दा रहें, हमें अपनी मातृभूमि पर गौरव होना चाहिए और इसकी प्रसन्नता में ही हम प्रसन्न रहें। हम अपना सबकुछ अपनी मातृभूमि पर अर्पित करने के लिए सदा तत्पर रहें, हमारा भारत सबसे प्यारा है।
पाठ प्रश्नोत्तर:
1. 'प्रथम किरणों के उपहार' से कवि क्या समझा रहे हैं ?
उ.- कवि यह कहना चाहता है कि सर्वप्रथम सूर्य की किरणें भारत भूमि पर पड़ती हैं, साथ ही भारत ही वह पहला देश है जिसे ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हुआ और तब भारत ने अपने ज्ञान के आलोक से सारे विश्व को आलोकित किया। सारे विश्व को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाला भारत ही है।
2. दधीचि ने कौन-सा त्याग किया था ?
उ- दधीचि भारत के पूर्व पुरुषों में महान् व्यक्तित्व हैं। ऋषि दधीचि ने देवताओं को परास्त करने वाले वृत्रासूर जैसे राक्षस का विनाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान किया था। उनकी अस्थियों से देवराज इन्द्र ने 'बज्र' बनवाया जिसके अमोघ प्रहार से राक्षसराज वृत्रासूर का संहार हुआ।
3. प्रलय के बाद आदि मानव मनु ने कहाँ सृष्टि की रचना की थी ?
उ.- प्रलय काल में सारे विश्व का विनाश हो गया। केवल आदि मानव मनु और शतरुपा ही बच रहे जो विशाल हिमालय पर शरण ले सके। हिमालय भारत का सिरमौर है। मनु ने यहीं सृष्टि की रचना की अर्थात सृष्टि की रचना भारत में हुई।
4. विश्व मानव के लिए भारत का संदेश क्या है?
उ.- विश्व मानव के लिए भारत का संदेश है अहिंसा परमोधर्मः । भारत सबके हित का चिन्तक है, भारत 'जियो और जीने दो' का प्रतिपालक है। भारत विश्वे-बंधुत्व का संदेश देता है।
5. भारत से किसने कौन-सी शिक्षा ली ?
उ.- भारत ने सारे विश्व को ज्ञान के आलोक से आलोकित किया। भारत ने यूनानियों को दया का पाठ पढ़ाया, चीन ने बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त किया, सुमात्रा ने बौद्ध धर्म का त्रिरत्न बुद्ध, धम्म और संघ प्राप्त किया। श्रीलंका ने बौद्ध धर्म की दीक्षा और संदेश प्राप्त किया।
AHSEC Class 12 Advance Hindi Chapter 1 भारत महिमा Important Questions Answers 2024
6. भारतीय सभ्यता-संस्कृति शस्त्र बल पर अधिक जोर देती है या शास्त्र बल पर ?
उ.- भारतीय सभ्यता-संस्कृति शास्त्र बल पर अधिक जोर देती है। शास्त्रों में वैसे मंत्रों का भंडार है जो आत्मा पर अधिकार करने में समर्थ हैं। शस्त्र बल से किसी के शरीर पर ही अधिकार किया जा सकता है, परन्तु उसकी आत्मा को परास्त नहीं किया जा सकता। शास्त्र के द्वारा व्यक्ति की सोच को बदला जा सकता है, उसके मन-मस्तिष्क पर राज किया जा सकता है।
7. प्रस्तुत कविता में भारतीयता की कौन-कौन सी विशेषताएँ सामने आई हैं ?
उ.- प्रस्तुत कविता 'भारत-महिमा' में भारत गौरव के उद्घोषक कवि जयशंकर प्रसाद ने भारतीयता की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है -
(i)सर्वप्रथम भारतभूमि पर ही सूर्य की पहली किरणें पड़ती हैं।
(ii) भारत को सबसे पहले ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हुआ और तब भारत ने विश्व को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित किया ।
(iii) हमारे सम्राट अशोक ने विश्व में शांति और अहिंसा का संदेश पहुँचाया।
(iv) सर्वप्रथम संगीत के सातों स्वरों (सा, रे, ग...) का अविष्कार हुआ और इसी से संगीत के वेद सामवेद की रचना हुई।
(v) प्रलय काल में सृष्टि को बचाने वाला भारत ही है।
(vi) यहाँ दानवीर दधीचि जैसे ऋषि हुए हैं जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया।
(vii) धर्म के नाम पर होनेवाली हत्यायें हमने रोका और अहिंसा का मार्ग अपनाया।
(viii) हमने रणभूमि में अजेय होते हुए भी दया-धर्म को कभी नहीं छोड़ा। हमारे सम्राट भी एक भिक्षु का जीवन गुजारते हैं।
(ix) भारत ने चीन, सुमात्रा, श्रीलंका आदि देशों को धर्म की दीक्षा दिया।
(x) भारतभूमि पर प्रकृति सदा मेहरवान रही है, भारत हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहा है।
(xi) हमारा चरित्र पवित्र रहा है, भुजाओं में अपार शक्ति रही है, अपनी मातृभूमि के प्रति हमेशा से हम त्याग करने को तत्पर रहे हैं, हम किसी को दुखी नहीं देख सकते हैं।
(xii) हम दान करने में, अतिथि सम्मान करने में, सत्य और प्रतिज्ञा पालन में आगे रहते हैं।
(xiii) हम आर्य किसी अन्य जगह से नहीं आए, बल्कि सदा से भारतभूमि ही हमारी जननी रही है, हम यहीं के मूल निवासी हैं।
(xiv) भारतवासी सदा अपनी मातृभूमि पर जान लुटाने के लिए तैयार रहते हैं।
(xv) भारत अद्वितीय है, अनुपम है, अपने पूर्वपुरुषों का सम्मान करने वाला है और सत्य की रक्षा के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहता है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
1. 'भारत-महिमा' किसकी कविता है ?
उ.- 'भारत-महिमा' छायावाद के अग्रणी कवि जयशंकर प्रसाद की कविता है।
2. 'हीरक हार' का अर्थ क्या है ?
उ.- प्रातःकाल की किरणें जब हिमालय पर गिरती हैं तब विशाल बर्फ का देर ऐसे चमक उठता है मानो किसी ने इसे हीरे की माला पहना दिया हो, हिमालय की प्रकाश किरणें सारे विश्व को आलोकित करती हैं। कवि यह कहना चाहता है कि भारत अपने ज्ञान के प्रकाश से सारे विश्व को आलोकित करता है, सारा विश्व भारत से ज्ञान प्राप्त कर प्रकाशित होता है।
3. 'नाव पर झेल प्रलय का शीत' से क्या तात्पर्य है ?
उ.- ऐसी मान्यता है कि जब प्रलय हुआ था तब सारा विश्व जलमग्न हो गया था और सारी सृष्टि समाप्त हो गई थी। पूरी सृष्टि में हमारे पूर्वपुरुष मनु और उनकी पत्नी शतरुपा बचे थे और वे एक नाव पर सवार होकर भयंकर जलराशि की गोद में उतर पड़े थे। वे इस विशाल जलराशि और इसके ठंड को झेलते रहे और फिर से उन्होंने नई सृष्टि की।
4. 'एक निर्वासित का उत्साह' किसके लिए कहा गया है ?
उ.- 'एक निर्वासित का उत्साह' पूर्व पुरुष पुरुषोत्तम रामचन्द्र के लिए कहा गया है।
5. 'विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर घूम' का आशय क्या है ?
उ.- हम भारतवासी केवल वीरता और अस्त्र-शस्त्र संचालन में ही सर्वश्रेष्ठ नहीं थे बल्कि हमने सारे विश्व को धर्म का पाठ पढ़ाया और हमारे धार्मिक विचारों को सारे विश्व ने सहर्ष अपनाया। हम अपनी वीरता से विजय प्राप्त करते रहे साथ ही हमने सारे विश्व को ज्ञान के प्रकाश से भी अलोकित किया और हमारी ख्याति सारे विश्व में स्थापित हुई।
6. 'हमारी जन्म भूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं', कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उ.- बहुत से इतिहासकारों ने ऐसा कहा है और प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि भारत में आर्य लोग बाहर से आकर बसे हैं। इसी सम्बन्ध में कवि स्पष्ट कर रहा है कि ऐसे विद्वानों को भ्रांति हो गई है। उनके तर्क और कुछ नहीं कुतर्क हैं क्योंकि हम भारतभूमि पर आदिकाल से रहते आ रहे हैं, हमारी जन्मभूमि भारतभूमि ही है।
7. निष्ठावर, कर दें हम सर्वस्व' किस पर निछावर करने की बात कवि ने की है ?
उ.- कवि ने अपनी मातृभूमि भारत पर अपना सब कुछ न्योछावर करने की बात कही है। मातृभूमि हमारी माता से भी बढ़कर है और इसकी रक्षा के लिए हमें अपना तन, मन और धन सबकुछ त्यागने के लिए सदा प्रस्तुत रहना चाहिए।
8. सप्रसंग व्याख्या करें
(क) बचाकर बीज रुप..
..हम बढ़े अभीत।'
उ.- प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी साहित्य-संकलन' में संग्रहीत 'भारत-महिमा' शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इसके रचयिता आधुनिक हिन्दी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न तथा छायावाद के आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद हैं। जयशंकर प्रसाद प्राचीन भारतीय गौरव गरिमा के प्रबल समर्थक और उदघोषक हैं। इनकी कविताओं में एक ओर जहाँ स्वच्छन्दता की प्रवृति देखने को मिलती है वहीं दूसरी ओर चित्रात्मक भाषा, नवीन प्रतिकों तथा भाषा का लाक्ष्णिक प्रयोग देखा जा सकता है। 'कामायनी' इनका महाकाव्य है जो विश्व साहित्य में गौरवमय स्थान रखता है।
प्रस्तुत कविता 'स्कन्दगुप्त' नाटक से उद्धृत है जिसमें प्राचीन भारत का गौरवगान समाहृत है।
व्याख्या- एक समय ऐसा आया जब सारा विश्व प्रलय काल के गाल में समा गया। सारी सृष्टि देखते-देखते जलमग्न भू में तिरोहित हो गई। सिर्फ लहराता प्रलयंकारी बाढ़ ही नजर आ रहा था। ऐसे प्रलयंकारी विनाश लीला के समय हमारे आदि पुरुष मनु और उनकी पत्नी शतरुपा ने नाव की शरण ली और सृष्टि को बीज के रुप में बचाया। उन्होंने जलमग्न विश्व में एक नाव पर सवार होकर अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, जमा देने वाली सर्दी को झेलते हुए सृष्टि को बचाया। इस कड़ाके की सर्दी की परवाह न करते हुए उन्होंने सूर्य सा तप्त शरीर लेकर अपने आपको सागर के हवाले कर दिया और निडर होकर आगे बढ़ते चले गए।
विशेष
(i) मनु महाकाव्य 'कामायनी' के नायक हैं।
(ii) आज का मानव उसी आदि पुरुष 'मनु' की संतति है।
(ख) 'सुना है दधीचि का... मेरे इतिहास ।'
उ.- प्रसंग ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- वह समय अस्थि युग का था जिसने भारतीय इतिहास को एक नायाब तोहफा दिया और हम अपने त्याग और बलिदान के लिए विश्व प्रसिद्ध हो गए। राक्षसों के आतंक से सारी दुनिया त्रस्त थी, देवराज इन्द्र घबराये हुए थे। सभी देवों ने जाकर दधीचि ऋषि से आग्रह किया कि वे मानवता के कल्याण के लिए अपनी अस्थियाँ दान कर दें क्योंकि उन अस्थियों से निर्मित हथियार से राक्षसों का सफाया संभव है। दधीचि ने अपने प्राण की परवाह न कर अपनी अस्थियों का दान किया जिससे बज्र का निर्माण हुआ और राक्षसों का विनाश संभव हुआ। हमारे पूर्वज इस प्रकार के त्यागी थे, उन्होंने अपनी जाति के उत्थान के लिए सबकुछ त्याग दिया। अस्थियुग में हम आयों के उत्कर्ष का प्रमाण इन्द्र का वज्र है जो दधीचि की अस्थियों से निर्मित हुआ था।
विशेष
(i) त्याग और बलिदान से मनुष्य अपना ही नहीं अपनी जाति का नाम उज्जवल कर जाता है।
(ii) हमारे पूर्व पुरुषों में भगीरथ, श्रीरामचन्द्र, भरत, राजा हरिशचन्द्र आदि त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्तियाँ हैं।
(ग) विजय केवल लोहे......
..घर-घर घूम ।'
उ.- प्रसंग ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- भारतवर्ष सदा से शक्ति सम्पन्न रहा। हमने अपनी ताकत के बल पर विजय प्राप्त किया, अभिमानियों का सिर कुचल डाला। हमारे जय-जयकार की डंका सारे विश्व में बजती रही। हम अस्त्र-शस्त्र में पारंगत रहे और विश्व विजयी बने। लेकिन इसके साथ ही हमने सारे विश्व को धर्म और ज्ञान की शिक्षा भी दी। हमने सारी पृथ्वी को 'विश्व-बन्धुत्व' और 'अहिंसा परमोधर्मः' का पाठ पढ़ाया। हमने कभी किसी कमजोर को नहीं सताया और हर मूल्य पर धर्म की रक्षा किया, न्याय का पक्ष लिया। सारे विश्व में हमारे धर्म की गूँज गूँजती रही, सारा विश्व इसे अपनाकर धन्य हुआ। हमारे राजाओं ने ऐशो-आराम का जीवन त्यागकर एक भिक्षुक का जीवन अपनाया और कभी भी आम लोगों से अपने को उच्च नहीं माना। वे घर-घर घूमकर दीन-दुखियों की हालत पूछते रहे और उनका दुख दूर किया।
विशेष-
(i) सम्राट अशोक ने कलिंग विजय में हुए रक्तपात का प्रायश्चित किया और बौद्ध धर्म अपनाया तथा एक भिश्रुक का जीवन गुजारने लगे।
(ii) सम्राट अशोक घर-घर घूमकर दीन-दुखियों की सेवा में उपस्थित होते रहे।
9.'भारत-महिमा' कविता किसकी रचना है और कहाँ से ली गई है ?
उ.- 'भारत-महिमा' छायावाद के आधार स्तम्भ कवि जयशंकर प्रसाद की कविता है और उनके नाटक स्कन्दगुप्त से ली गई है।
10. जयशंकर प्रसाद की कुछ रचनाओं का नाम लिखें।
उ.- कामायनी, चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम पचिक, आँसू, लहर, झरना आदि।
11. जयशंकर प्रसाद के तीन नाटकों का नाम लिखें।
उ.- चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त और राजश्री।
12. जयशंकर प्रसाद के दो उपन्यासों का नाम लिखें।
उ.- तीतली और कंकाल ।
13. जयशंकर प्रसाद की एक अन्य कविता का नाम बतायें जो 'भारत-महिमा' से मिलती-जुलती हो ?
उ.- मधुमय देश ।
14. सात स्वरों के संगीत से सजा एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ का नाम बतायें।
उ.- सामवेद ।
15. 'बचाकर बीज रुप से सृष्टि' बीज रुप कौन थे ?
उ.- आदि पुरुष मनु ।
16. 'वरुण पथ' का मतलब क्या है ?
उ.- 'वरुण पथ' का मतलब है- सागर ।
17. दधीचि की हड्डियों से क्या बना था ?
उ.- दधीचि की हड्डियों से इन्द्र का हथियार 'बज्र' बना था।
18. 'निर्वासित का उत्साह' निर्वासित कौन थे?
उ.- निर्वासित हमारे पूर्व पुरुष महामानव श्रीरामचन्द्र थे।
19. बलि चढ़ाना किसने बंद करवाया ?
उ.- बलि चढ़ाना महात्मा बुद्ध ने बन्द करवाया।
20. 'भिक्षु होकर रहते सम्राट', ये सम्राट कौन थे?
उ.- सम्राट अशोक थे।
21. 'यवन को दिया दया का दान' यवन कौन था और दया का दान देने वाला कौन था ?
उ.- यवन सिकन्दर महान् का सेनापति सेल्युकस था। दया का दान देने वाले सम्राट चन्द्रगुप्त थे।
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Most Important Questions for Exam [परीक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न ]
1. 'भारत महिमा' शीर्षक कविता के कवि का नाम क्या है ? (AHSEC 2015)
2. "यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि" -यहाँ 'दया का दान' और 'धर्म की दृष्टि' के क्या अर्थ है ? (AHSEC 2015)
3. ""जगे हम लगे जगाने" यहाँ कवि का उद्देश्य क्या है, स्पष्ट कीजिए। (AHSEC 2015)
4. 'भारत-महिमा' कविता में चित्रित भारत की महिमा को रेखांकित कीजिए। (AHSEC 2015)
5. "सुना है दधीचि का यह त्याग" यहाँ दधीचि के किस त्याग के बारे में कहा गया है ? (AHSEC 2016)
6. "हर्मी ने दिया शान्ति संदेश सुखी होते देकर आनंद।" इसमें कौन सी बात निहित है, स्पष्ट कीजिए । (AHSEC 2016)
7. 'भारत-महिमा' कविता के आधार पर भारतवर्ष के लोगों की किन्हीं चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए । (AHSEC 2016)
8. 'भारत-महिमा' शीर्षक कविता में 'वही हम दिव्य आर्य-सन्तान' कह कर कवि हमें किसकी ओर संकेत करना चाहते है ? (AHSEC 2017)
9. हमने दूसरे देशों को क्या-क्या दिये हैं? ('भारत-महिमा कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।) (AHSEC 2017)
10. विश्व मानव के लिए भारत का क्या संदेश 'भारत महिमा' कविता द्वारा दिया गया है ? (AHSEC 2017)
11. 'भारत-महिमा' कविता का भार्वाथ लिखिए। (AHSEC 2017)
12. 'जगे हम लगे जगाने' आशय स्पष्ट कीजिए। (AHSEC 2018)
13. 'हर्मी ने दिया शान्ति संदेश' -हमने शान्ति के संदेश क्या-क्या दिए है? (AHSEC 2018)
14. भारत ने विश्व के कल्याण के लिए दुनिया को क्या-क्या उपहार दिए हैं ? स्पष्ट कीजिए (AHSEC 2018)
15. भिक्षु होकर रहते सम्राट दया दिखलाते घर-घर घूम।' आशय स्पष्ट कीजिए (AHSEC 2019)
16. 'भारत महिमा' कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते है? (AHSEC 2019)
17. पठित कविता के आधार पर भारतीयता की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए (AHSEC 2019)
18. भारत महिमा' किसकी कविता है ? (AHSEC 2020)
19. पुरन्दर ने पवि से है लिखा अस्थि-युग का मेरे इतिहास ।' -आशय स्पष्ट कीजिए (AHSEC 2020)
20. 'प्रथम किरणों के उपहार' से कवि क्या समझा रहे हैं ? (AHSEC 2020)
21. जयशंकर प्रसाद ने भारतवर्ष की महिमा का वर्णन किस तरह से किया है? पठित कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (AHSEC 2020)
22. "किसी का हमने छीना नहीं" यहाँ छीनने का क्या तात्पर्य है? (AHSEC 2012)
23. भारत की किन्हीं तीन महिमाओं को 'भारत महिमा' के आधार पर रेखांकित कीजिए। (AHSEC 2012)
24. 'भारत महिमा' शीर्षक कविता के कवि का नाम क्या है? (AHSEC 2013)
25. भारत की किन्हीं तीन महिमाओं को रेखांकित कीजिए। (AHSEC 2013)
26. 'दधीचि का वह त्याग हमारा जातीयता विकास' यहाँ कवि क्या कहना चाहते हैं? (AHSEC 2013)
27. "जगे हम लगे जगाने विश्व लोक में फैलो फिर आलोक ।" इस काव्य पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (AHSEC 2014)
28. "किसी का हमने छिना नहीं।" यहाँ कवि प्रसाद जी क्या कहना चाहते है? (AHSEC 2014)
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