AHSEC Class 12 Biplaw Gayan [HS 2nd Year Advance Hindi Unit- 3 Notes] 2024 PDF
विप्लव गायन
-बालकृष्ण शर्मा' नवीन'
1. 'कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए, एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए, प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए, नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए, बरसे आग, जलव जल जाए भस्मसात् भूधर हो जाए, पाप पुण्य सद्-सद् भावों की धूल उड़ उठे वाएँ-बाएँ, नभ का वक्षस्थल फट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ, कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए।'
शब्दार्थ :- उथल-पुथल- उलट-पुलट, प्राणों के लाले पड़ जाएँ- जीना दूभर होना, त्राहि-त्राहि -रक्षा, भस्मसात्- जलकर राख होना, जलद बादल, भूधर- पर्वत, दाएँ-बाएँ- इधर-उधर, नभ- आकाश, टूक-टूक- टुकड़े-टुकड़े।
उ.- प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी साहित्य संकलन' में संकलित विप्लव गायन' शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' हैं। 'नवीन' की रचनाओं में रश्मि रेखा, क्वासि, प्राणार्पण, उर्मिला आदि ख्याति प्राप्त हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने विनाश लीला की कल्पना की है ताकि नया सृजन हो। वर्तमान व्यवस्था को समाप्त कर कवि नई व्यवस्था स्थापित करना चाहता है।
व्याख्या- हे कवि ! तूने प्रेम और श्रृंगार के बहुत गीत गा लिए। प्रकृति और मनुष्य के माध्यम से प्रणय और सौन्दर्य की खूब रचनाएँ कर लीं। अब इन्हें बंद करो और क्रांति के गीत गाओ जिनसे देश में तहलका मच जाए, क्रांति आ जाए, चारों तरफ हाहाकार मच जाए।
कवि । कुछ ऐसी क्रांतिकारी तान छेड़ो जिसको सुनकर युवक भड़क उठें और देश में ऐसी हलचल हो कि देश में उलटफेर हो जाए। इस विद्रोह की लहर ऐसी तीव्र हो जो सारे राष्ट्र में हिलोरे ले। एक लहर उत्तर से चले तो दूसरी दक्षिण से। ऐसी आग भड़के कि अंग्रेजों और उसके पिट्ठुओं को प्राण बचाना कठिन हो जाए। उनकी बचाओ-बचाओ की आवाज से आकाश गूंजने लगे। चारों ओर आग लग जाए और उसका धुआँ विश्व में फैल जाए ताकि विश्व के लोगों को पता चल जाए कि भारत में अंग्रेजी राज्य की लाश जल चुकी है। चारों ओर सर्वनाश का दृश्य उपस्थित हो। पाप क्या है, पुण्य क्या है, सद्भावना क्या है ? इस समय सोचने का वक्त नहीं है। क्रांति की आंधी में सबका नाश होता है। इस क्रांति के कारण आकाश की छाती फट जाए और तारे टूट-टूटकर पृथ्वी फ गिरें जिससे इसकी शीतलता समाप्त हो जाए।
विशेष- (i) क्रांति-काल के दृश्य का सजीव चित्रण हुआ है।
(ii) भाषा में प्रवाह है।
(iii) भयानक रस का सुन्दर और सटीक प्रयोग है।
2. 'माता की छाती का अमृतमय पय कालकूट हो जाए, आँखों का पानी सूखे, हाँ, वह खून की घूँट हो जाए, एक ओर कायरता काँपे, गतानुगति विगलित हो जाए, अंधे मूढ़ विचारों की वह अचल शिला विचलित हो जाए, और दूसरी ओर कैंपा देने वाला गर्जन उठ धाए, अंतरिक्ष में एक उसी नाशक तर्जन की ध्वनि मँडराए, कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए।'
शब्दार्थ :- अमृतमय पय- अमृत के समान दूध, कालकूट विष, खून की घूँट रीति-रीवाज, विगलित गलना-सड़ना, अचल-शिला हिल जाए, धाए दौड़ना, तर्जन धमकाना। मन मसोश कर रहना, गतानुगति अटल चट्टान, विचलित हो जाए
उ.- प्रसंग- ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- हे कवि । तुम ऐसा गीत सुनाओ जो माता की छाती का दूध विष बना दे। आँखों के आँसू जिससे करुणा प्रकट होती है वह समाप्त हो जाए। तुम्हारा गीत करुणा को मिटा दे। दुख, कष्ट, पीड़ा इतनी बढ़े कि हृदय का बोझ हलका करने के लिए आँसू न रहे। विवशता और असहाय स्थिति इतनी बढ़े कि मनुष्य खून के घूँट पीकर रह जाए, उसके पास मूक होकर देखने के अलावा कोई चारा न रहे।
हे कवि ! तुम्हारे गीत में विनाश अनिवार्य है। इसलिए कवि चाहता है कि समाज के पुराने गले-सड़े रीति-रिवाज, परंपराएँ, अंधविश्वास और रुढ़ियाँ क्रांति की ज्वाला में समूल जल जाएँ और नए समाज-सुधार का मार्ग खुल जाय। यह क्रांति इतनी तीव्र हो कि उसकी गर्जन आकाश और चारों दिशाओं में हाहाकार मचा दे।
विशेष- (i) ओजस्वी एवं प्रवाहमय 'भाषा का प्रयोग हुआ है।
(ii) मुहावरों के प्रयोग ने भाषा को प्रवाह दिया है।
(iiii) रुपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
3. 'नियम और उपनियमों के ये बंधन टूक-टूक हो जाएँ,
विश्वम्भर के पोशाक वीणा के सब तार मूक हो जाएँ,
शॉति दंड टूटे, उस महा रुद्र का सिंहासन थर्राये,
उसकी शोषक धासोच्छ्वास, विश्व के प्रांगण में घहराए,
नाश। नाश ।। हाँ, महानाश !!! की प्रलयंकारी आँख खुल जाए,
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उपल-पुथल मब जाए।'
शमार्थ: विश्वम्भर संसार का पालक, कर्ता विष्णु, महारुव श्वासोच्छ्वास वेगपूर्ण साँस लेना। शंकर,
उ. प्रसंग ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- हे कवि । तुम ऐसा गीत सुनाओ कि समाज और राष्ट्र के नियम और उपनियम, कायदे और कानून की धारा और उपधाराएँ सब खाक बन जाएँ क्योंकि इन सामाजिक और राष्ट्रीय-विधानों की नियमावली ने मनुष्य को बाँध रखा है।
विश्व का भरण-पोषण करने वाले देवता भगवान विष्णु की सभी पोषक शक्तियाँ समाप्त हो जाएँ। शांति के सभी माप-दण्ड टूटकर ऐसी अशांति का निर्माण करें कि भगवान शिव का सिंहासन डोल उठे। वे घबराकर वेगपूर्ण साँस लेने लगें ताकि सृष्टि को जलाकर नष्ट करने वाला उनका तीसरा नेत्र खुल जाए और प्रलय की ज्वाला सम्पूर्ण संसार को भष्मीभूत कर दे।
विशेष- (i) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग हुआ है।
(i) सहज, सरल भाषा का प्रयोग है।
4. 'सावधान। मेरी वीणा में चिनगारियाँ आन बैठी हैं,
टूटी हैं मिजरावें, युगलांगुलियाँ ये मेरी ऐंठी हैं,
कंठ रुका जाता है, महानाश का गीत रुद्ध होता है।
आग लगेगी क्षण में, हत्तल में अब क्षुब्ध युद्ध होता है।।
झाड़ और झंखाद व्याप्त है इस ज्वलंत गायन के स्वर से।
रुद्ध गीत की क्षुब्ध तान निकली है मेरे अंतर तर से।'
शब्दार्थ :- चिनगारियाँ अग्नि कण, मिजरावें सितार बजाने का छल्ला, व्याकुल कुद्ध, रुद्ध - युगलांगुलियाँ - अंगलियाँ, हत्तल हृदय रुपी पंखुड़ी, क्षुब्ध रुकना, झाड़ और झंखड़ व्यर्थ की, ज्वलंत स्पष्ट दिखई देने वाला।
उ.- प्रसंग ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- हे समाज वालों । सावधान हो जाओ। अब मेरी वीणा में क्रांति की चिनगारियाँ आ बैठी हैं। अब मैं वीणा पर प्रेम के गीत के बजाय क्रांति का राग छेड़ने के लिए तैयार हूँ। मेरी अंगुलियाँ ऐंठ गयी हैं और वीणा की मिजारवें टूट गयी हैं। मेरा कंठ रुद्र हो रहा है और उससे रुक-रुक कर विनाश का गीत फूट रहा है। इस गीत से चारों ओर आग लग जायगी। मेरे हृदय में भंयकर उथल-पुथल मची हुई है। अब हृदय से क्रोधपूर्ण स्वर फूट रहा है जिसे मैंने बहुत दिनों तक रोक कर रखा था। इस क्रुद्ध स्वर से समाज में रुढ़ियाँ जल जायेंगी। सब कुछ स्वाहा हो जाएगा।
विशेष- (i) ओजस्वी भाषा का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
(ii) अनत्यानुप्रास का सुन्दर प्रयोग है।
5. 'कण कण में है व्याप्त वही स्वर, रोम-रोम गाता है वह ध्वनि, वही तान गाती रहती है, कालकूट फणि की चिन्तामणि, जीवन ज्योति लुप्त है अहा। सुप्त हैं संरक्षण की घड़ियाँ । लटक रही हैं प्रतिपल में इस नाशक संभक्षण की लड़ियाँ। चकनाचूर करो जग को, गूँजे ब्रह्मांड नाश के स्वर से।
रुद्ध गीत का कुद्ध तान निकली है मेरे अंतर तर से।'
शब्दार्थ :- कालकूट फणि विषैला साँप, संरक्षण रक्षा, संभक्षण भक्षण करना ।
उ.- प्रसंग ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- देखो । पृथ्वी के कण-कण में मेरे विनाशक गीत का स्वर गूँज रहा है और रोम-रोम से उसी का स्वर निकल रहा है। आज विश्व में सर्वत्र मेरा विनाशक प्रलय-गीत गूँज रहा है। शेषनाग के सिर पर विद्यमान चिंतामणि भी उसी प्रलय का गीत गाता रहता है। संसार से जीवन का प्रकाश गायब हो गया है और रक्षा की आशा समाप्त हो गयी है। न तो जीवन का आनन्द है और न किसी को अपनी रक्षा पर भरोसा है। मेरे प्रलयंकारी गीत से संसार में नाश का तांडव नृत्य हो रहा है।
आज मेरे हृदय से क्रोध से भरी हुई प्रलयंकारी गीत का स्वर फूट रहा है जो संसार को नष्ट-भ्रष्ट कर देगा, सारा संसार भष्मीभूत हो जाएगा, सब कुछ समाप्त हो जाएगा।
विशेष- (i) सार्थक ओजस्वी भाषा का प्रयोग हुआ है।
(ii) प्रलयकाल का चित्र अंकित हुआ है।
6. 'दिल को मसल मसल मेंहदी रचवा आया हूँ में यह देखो -
एक एक अंगुल-परिचालन में नाशक तांडव को पेखो ! विश्वमूर्ति । हट जाओ, यह वीभत्स प्रहार सहे न सहेगा। टुकड़े-टुकड़े हो जाओगी, नाश-मात्र अवशेष रहेगा।। आज देख आया हूँ जीवन के सब राज समझ आया हूँ,
भू-विलास में महानाश के, पोषक सूत्र परख आया हूँ।'
शब्दार्थ :- अंगुलि परिचालन अंगुलियों को चलाना, वीभत्स भयानक, राज रहस्य, भू-विलास भोग, पोषक सूत्र पोषक तत्व ।
उ.- प्रसंग ऊपर लिखित प्रसंग दें।
व्याख्या- आज मैंने अपने दिल को मसल मसल कर, दिल के अरमानों का खून करके, हाथों पर मेंहदी लगायी है एवं मेरी अंगुलियों की एक-एक भंगिमा नाशकारी तांडव का संकेत दे रही है। मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि तुम मेरे सामने से हट जाओ। मैं जिस क्रांति का आह्वान कर रहा हूँ, उसका प्रहार बहुत भयंकर है, इसे बरदास्त नहीं किया जा सकता और आज सब कुछ खण्ड-खण्ड होकर टूट जाएगा और नाश का चिन्ह मात्र रह जाएगा। मैंने जीवन के रहस्य को समझ लिया है, मैंने समझ लिया है कि जीवन क्षणभंगुर है, अनित्य है। मैंने यह भी देख लिया है कि महानाश में जीवन का पोषक तत्व है, विनाश के बाद ही नवनिर्माण होता है। हे विश्ध ! तुम जीवन का राग भुला दो और मृत्यु का वरंण करने के लिए तैयार हो जाओ। मेरे हृदय से प्रलय-गीत की तान फूट रही है जो सबको नष्ट कर देगी, सबकुछ समाप्त हो जाएगा।
विशेष- (i) अनुप्रास अलंकार का सटीक और सुन्दर प्रयोग है।
(i) भाषा प्रवाहमय है और ओज गुण से परिपूर्ण है।
पाठ प्रश्नोत्तर
1. कवि नवीन जी कैसी तान सुनना चाहते हैं ?
उ.- कवि नवीन ऐसी तान सुनना चाहते हैं जो सारी दुनिया में उथल-पुथल मचा दे। चारों तरफ विनाश लीला का दृश्य हो, सब रक्षा-रक्षा चिल्ला उठें। इस तान से सारी सृष्टि समाप्त हो जाए।
2. नवीन जी कवियों से क्या आह्वान कर रहे हैं?
उ.- कवि नवीन जी कवियों को आह्वान कर रहे हैं कि वे अपनी कविता की रागिनी में वह तान भर दें जो नाश का सशक्त संबल बने। कवियों की तान इस प्रकार का वातावरण सृजित करे की विनाश का तांडव नृत्य होने लगे और सबकुछ स्वाहा हो जाए, सारी सृष्टि नष्ट हो जाए।
3. सामाजिक परिवर्तन लाने में कवियों की कैसी भूमिका रहती है ?
उ.- कवि अपनी कविताओं के माध्यम से सारे समाज को बदल सकते हैं। उनकी कलम से निकली हुई अक्षर रुपी चिन्गारी सारे समाज को आन्दोलित और प्रेरित कर सकती है, फ्रांस की शक्तिशाली साम्राज्य का विनाश कर सकती है, एक छोटी बच्ची को भी युद्ध के लिए प्रेरित कर सकती है-
एक छोती छी पैनी छी तलवाल मुझे भी दे दे,
में उछको माल भगाऊँ, क्षण मुझे लन कलने दे। -हल्दीघाटी
कवि समाज को पूरी तरह परिवर्तित करने में सक्षम है।
4. कवि जग को चकनाचूर करने के लिए क्यों कह रहे हैं?
उ.- यह जग अब अव्यवस्था, अत्याचार, भ्रष्टाचार और आतंक का अड्डा बन गया है। सारी सामाजिक व्यवस्थायें छिन्न-भिन्न हो गई हैं। हर जगह लूट-खसोट, खून-खराबा और अनाचार का बोल-बाला है। मानवीय गुण इस जग से विलुप्त हो गए हैं। अब नई व्यवस्था की जरुरत है और यह तब ही संभव है जब वर्तमान व्यवस्था नष्ट हो जाए। इसलिए कवि वर्तमान व्यवस्था को चकनाचूर कर नई व्यवस्था की स्थापना चाहता है।
5. 'दिल को मसल-मसल…………..ताण्डव को पेखो। '
उ.- आज मैंने अपने दिल को मसल मसल कर, दिल के अरमानों का खून करके, हाथों पर मेंहदी लगायी है एवं मेरी अंगुलियों की एक-एक भंगिमा नाशकारी तांडव का संकेत दे रही है। मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि तुम मेरे सामने से हट जाओ। मैं जिस क्रांति का आह्वान कर रहा हूँ, उसका प्रहार बहुत भयंकर है, इसे बरदास्त नहीं किया जा सकता और आज सब कुछ खण्ड-खण्ड होकर टूट जाएगा और नाश का चिन्ह मात्र रह जाएगा। मैंने जीवन के रहस्य को समझ लिया है, मैंने समझ लिया है कि जीवन क्षणभंगुर है, अनित्य है। मैंने यह भी देख लिया है कि महानाश में जीवन का पोषक तत्व है, विनाश के बाद ही नवनिर्माण होता है। हे विश्ध ! तुम जीवन का राग भुला दो और मृत्यु का वरंण करने के लिए तैयार हो जाओ। मेरे हृदय से प्रलय-गीत की तान फूट रही है जो सबको नष्ट कर देगी, सबकुछ समाप्त हो जाएगा।
विशेष- (i) अनुप्रास अलंकार का सटीक और सुन्दर प्रयोग है।
(i) भाषा प्रवाहमय है और ओज गुण से परिपूर्ण है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर:
1. 'विप्लव गायन' किसकी रचना है ?
उ.- 'विप्लव गायन' कविता कवि बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' की रचना है।
2. 'विप्लव गायन' का अर्थ क्या है ?
उ.- विप्लव गायन का अर्थ है- विध्वंस का गीत, क्रांति का गीत ।
3. 'नवीन' उथल-पुथल मचाने के लिए कवि से क्या आशा करते हैं ?
उ.- 'नवीन' आशा करते हैं कि कवि वैसा गीत गायेगा जिससे सारी पृथ्वी पर नाश का तांडव शुरु हो जाएगा और हर जगह विनाश लीला का दृश्य नजर आएगा। सारी पृथ्वी पर उथल-पुथल हो जाएगा, सबकुछ बदल जाएगा।
4. नियम और उपनियमों के बन्धन को टूक-टूक हो जाने की बात कवि क्यों कह रहे हैं?
उ - सारा समाज, विश्व प्रशासन तंत्र के अन्दर नियम-कानून के बंधन से जकड़ा हुआ है। सामाजिक रीति-रीवाज, परम्परायें मनुष्य के पैरों में बेड़ियों के समान जकड़े हुए हैं। इन नियम-कायदों के टूटने से ही मनुष्य इनसे मुक्ति पा सकता है और एक नए समाज की स्थापना का मार्ग खुल सकता है।
5. 'रुद्ध गीत का कुद्ध तान निकली है मेरे अन्तर तर से' का भाव स्पष्ट कीजिए।
उ.- कवि कहता है कि आज मनुष्य पारम्परिक मान्यताओं और सामाजिक बुराइयों से तंग आ चुका है। कवि इन पारंपरिक नकारा मान्यताओं से इस प्रकार सुलग रहा है कि उसके दग्ध हृदय से विनाश की रागिनी फूट पड़ी है जो सारे विश्व में तबाही मचा देगी। कवि एक नए समाज की, शोषण मुक्त समाज की और बुराइयों से मुक्त समाज की स्थापना करना चाहता है।
5. 'नवीन' की इस रचना से आपको क्या संदेश मिलता है ?
उ.- नवीन की रचना 'विप्लव गायन' से हमें निम्न संदेश मिलता है-
(i)पारम्परिक समाज की बुराइयों को हटाना होगा।
(ii) बेकार हो गए नियम कानूनों को नए परिप्रेक्ष्य के अनुसार बदलना होगा।
(iii) समाज को बदलते समय के अनुसार बदलना होगा।
(iv) बेकार की चीजों को नष्ट कर नवनिर्माण का रास्ता साफ करना होगा।
7. 'जीवन गीत भुला दो, कंठ मिला दो मृत्यु गीत के स्वर से' का भावार्थ लिखो।
उ.- वर्तमान जीवन को पालनेवाले गीतों को छोड़कर इन बेकार और नकारा हो गए जीवन मान्यताओं को नष्ट करना आवश्यक है। विध्वंश में ही नव-निर्माण का स्वर सारे विश्व में फैलाना होगा।
8. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जन्म कहाँ हुआ था ?
उ.- वालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जन्म मध्यप्रदेश के भयाना गाँव में हुआ था।
9. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जन्म कब हुआ था ?
उ.- बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जन्म 8 दिसम्बर, 1897 ई. में हुआ था।
10. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' के पिता का नाम क्या था ?
उ.- यमुना प्रसाद शर्मा।
11. कवि क्यों सारी चीजों को नष्ट कर देना चाहता है ?
उ.- वर्तमान की सारी चीजें, सारी व्यवस्थायें बेकार हो गयी हैं। इन सबको जनाकर कवि नव-निर्माण करना चाहता है।
12. कवि को विप्लव गीत गाने के लिए किसने और क्यों कहा है?
उ.- कवि को विप्लव गीत गाने के लिए उसकी अन्तरात्मा ने कहा है। कवि समज में व्याप्त असमानता, अत्याचार, शोषण आदि दोषों को देखकर दुखी है। उसका विचार है कि समाज के ये दोष, उपदेश, सुधारवाद की बात कहकर दूर नहीं हो सकते। इसके लिए एक ही मार्ग है- विनाश। इसलिए कवि विप्लव का गीत गाना चाहता है।
13. 'प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए' - किसके लिए, क्यों कहा गया है ?
उ.- 'प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए' यह कथन समाज के लिए कहा गया है। समाज रुढ़ियों में जकड़ा हुआ है और अन्याय, शोषण, आतंक आदि का शिकार है। क्रांति के द्वारा उसे नष्ट करना आवश्यक है, तब ही वह सही मार्ग पर आएगा।
14. कवि सर्वनाश का गीत गाने की कामना क्यों करता है ?
उ.- कवि के सर्वविनाश का गीत गाने की कामना का कारण है 'पापों में इसी दुनिया' को नष्ट कर नव-निर्माण करना।
15. अंतरिक्ष में किस विध्वंसक हुँकार की कामना की गयी है ?
उ.- कवि ने अंतरिक्ष में भी क्रांति के विनाशकारी हुँकार की कामना की है जिससे जन में महानाश छा जाए, बादल जलने लगें, चारों ओर आग बरसने लगे, पाप-पुण्य और अच्छे-बुरे विचारों का चिंतन समाप्त हो जाए, आकाश की छाती फट जाए, नक्षत्र-ल बिखर जाएँ, चारों ओर विनाश का तांडव हो।
16. महानाश की प्रलयंकारी आँख खुल जाने से किसके विनाश की संभावना है ?
उ.- महानाश की प्रलयंकारी आँख खुल जाने से समाज के संचालक नियम उपनियम, भगवान विष्णु की पालनकर्ता शक्ति, शांति-व्यवस्था आदि के विनाश की संभावना है।
17. 'विप्लव गायन' कविता का सारांश अपने शब्नों में लिखें।
उ.- कवि बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने वर्तमान दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को पूर्णतः नष्ट कर देने की सलाह दी है। कवि क्रांति के द्वारा सारे विश्व में हलचल मचा देना चाहता है। वह चाहता है कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था, नियम कानून, रीति-रीवाज सब के सब जलकर भष्म हो जायें जिससे नव निर्माण का पथ साफ हो। वह माता के दूध को विष बनाकर, कायरता, अनीति, अन्याय, अत्याचार आदि दुर्गुणों को मौत की नींद खुला देना चाहता है। वह इस नाश की ज्याला से आकाश में भी उथल-पुथल कर देना चाहता है। कवि वीणा से ऐसी रागिनी निकालना चाहता है जिसे सुनकर कोई भी सलामत नहीं बचे। सबकुछ नष्ट होने पर ही नये समाज की स्थापना संभव है। कवि समाज में व्याप्त वीभत्सता को तांडव नृत्य के हवाले कर देना चाहता है। कवि चाहता है कि शंकर का तीसरा नेत्र खुले जिसकी प्रचंड ज्वाला से सारा विश्व भष्मीभूत हो जाए, कोई भी, कुछ भी साबूत न बचे। सब कुछ नष्ट होने पर ही नया सूजन होगा, नवनिर्माण होगा, नये समाज का, नए नियम कानून का निर्माण होगा। यह नया विश्व समाज, बराबरी और समता के आधार पर स्थापित होगा जिसमें न कोई शोषक होगा और न कोई शोषित।
19. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का संक्षिप्त जीवन परिचय दें।
उ.- जीवन-वृत्त- बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जन्म 1897 ई. में ग्वालियर जिलान्तर्गत उज्जैन के भयाना ग्राम में हुआ था। उनके पिता जमुना प्रसाद बल्लभ संप्रदाय में दीक्षित थे और उदयपुर में 'श्रीनाथ द्वारा' नामक स्थान पर रहते थे। कुछ वर्षों तक वहाँ उनके साथ रहने के पश्चात् अध्ययन के लिए बालक बालकृष्ण को ग्वालियर जाना पड़ा। मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे उज्जैन के माधव कालेज में प्रविष्ट हुए और वहीं से उन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् गणेश शंकर विधार्थी जी से कवि 'नवीन' का परिचय हुआ और कानपुर आकर वे रहने लगे। वे बी.ए. कक्षा में थे तभी असहयोग आन्दोलन छिड़ा। उसमें उन्होंने सक्रिय भाग लिया और अध्ययन छोड़ दिया। यहीं से उनकी देश-सेवा आरम्भ हुई। वे कई बार जेल गये। इसी के साथ ही साहित्यिक सेवा भी चलती रही। ओजस्वी स्वर में उन्होंने राष्ट्रीय कविताओं का गान किया। उनकी कविता में उनका दो रुप देखने को मिलता है। कुछ कविताएँ प्रेम की अप्ति से सम्बन्धित हैं और कुछ राष्ट्रीय भावनाओं तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमताओं से सम्बन्धित क्रांतिमूलक भावों से समन्वित हैं। राष्ट्रीयता की ओर उनका झुकाव विद्यार्थी जी के प्रति ऋण स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा है-
'तेरे बरद हस्त छाये हैं अब भी मेरे मस्तक पर'
उनकी हिन्दी-सेवा और राष्ट्र-सेवा के कारण उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनकी रचना का आरम्भ 'संतू' नामक कहानी से हुआ। 'कुंकुम', 'विस्मृता उर्मिला', 'क्वासि', 'अपलक' और 'रश्मि रेखा' उनके काव्य ग्रन्थ हैं। इन कृत्तियों में कहीं उनकी प्रेम भावना की अभिव्यक्ति है तो कहीं राष्ट्रवादी और प्रगतिशील भावनाओं की। 'कुंकुम' राष्ट्रीय विचारधारा की कविताओं का संग्रह है और 'अपलक' तथा 'क्वासि' में प्रेम-भावना का मर्मस्पर्शी वर्णन है। सन् 1960 ई. में 'नवीन' जी का देहावसान हो गया।
20. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं की समीक्षा कीजिए।
उ.- वर्ण्य-विषय- नवीन जी का भावुक हृदय समय-समय पर प्रेम की प्यास का अनुभव करता रहा है। रुप के प्रति आसक्ति-भाव का कथन उन्होंने बड़े ललित ढंग से किया है। अपनी प्रेमिका से अपने अंधकार पूर्ण जीवन को आलोकित करने की आकांक्षा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा है-
'दीप-रहित जीवन रजनी में, भटक रहा कब से सजनी में।
भूल गया हूँ अपनी नगरी, कुहू व्याप्त है सारी डगरी ।।
अपनी दीप-शिखा की किरणें जाने को उस पथ की ओर ।
जहाँ भ्रान्त-सा ढूँढ रहा हूँ प्रतिमे तव अंचल का छोर ।।'
राष्ट्रीय कवि के रुप में उन्होंने अपने विद्रोही-विचारों को पुष्ट किया है। विप्लवकारी की तरह उन्होंने कवि से क्रांतिकारी भावों की पुष्टि की माँग की है। उनकी इस आकांक्षा का ओजस्वी स्वर सुनिए-
'कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए,
प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए।।"
असहयोग आन्दोलन की असफलता पर कवि का मन निराशा से भर गया। उसके अन्दर वेदना और क्षोभ का भाव भर गया। उसका यह असंतोष उसके पराजय-गीत' में मुखरित हुआ है। अपनी ध्वजा को झुकी हुई देखकर वह निराश भाव से कह उठा-
'आज खड्ग की धार कुंठित खाली तूणीर हुआ।
विजय-पताका झुकी हुई है, लक्ष्य-भ्रष्ट यह तीर हुआ ।।
बढ़ती हुई कतार फौज की सहसा व्यस्त हुई।
त्रस्त हुई भावों की गरिमा, महिमा सब संन्यस्त्र हुई ।।'
सत्याग्रह के प्रति निष्ठा के कारण सत्याग्रहियों के प्रति उनका स्वभाविक प्रेम था। ऐसे ही सत्याग्रहियों की मुक्ति के अवसर पर कवि ने 'कैदी जीवन' का चित्र खींचते हुए 'कैदी का स्वागत' शीर्षक कविता की रचना की-
'माँ ने किया पुकार बढ़ा तू चढ़ा हुआ कुरबान । हमने देखा तुझे टहलते सिकचों के दरम्यान ।। हाथों में थी गूँज कभी बैठा चक्की पर गाते।
कंवल बिछा ओढ़ कंबल दिन बिता दिये मदमाते ।।'
कैदी जीवन की अनुभूति ने कैदी का जैसा सुन्दर चित्र इस पद में उपस्थित किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
राष्ट्रीय कवियों के स्वर में ही प्रगतिशील कवियों का स्वर भी पहले-पहल सुनाई पड़ा। प्रगतिवाद की पहली सीढ़ी थी क्रांति। विप्लव और क्रांति ही पहले प्रगतिशील कवियों के विषय बने। नवीन कृत 'विप्लव गायन' में यही विप्लवकारी स्वर मुखरित हुआ है। भूखे मनुष्य को जूठा पत्तल चाटते देखकर उनका मन मनुष्य की दीन-हीन दशा पर रो उठा। इतनी विषमता, इतनी लाचारी और इतनी अकिंचनता भरी दुनिया देखकर कवि 'जगपति' पर खीझ व्यक्त करता हुआ कह उठा-
लपक चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को।
' उस दिन सोचा क्यों न लगा दूँ आज आग इस दुनिया भर को ।।
यह भी सोचा क्या न टेंटुआ घोटा जाय स्वयं जगपति का।
जिसने अपने ही स्वरुप को रुप दिया इस घृणित विकृति का।।'
'नवीन' की इन कविताओं को किसी प्रगतिशील कवि की कविताओं के बीच रखकर परखा जा करता है। इसमें कवि की स्वाभाविक खीझ और दीन-जनों के प्रति सहानुभूति ही दीख पड़ेगी।
कुछ कविताएँ वर्णनात्मक पद्धति पर भी लिखी गई हैं। इनमें विचार और विश्लेषण की गहराई देखने को मिलती है। 'रहस्य-उदघाटन' शीर्षक कविता में नवीन जी' ने सांसारिक आकर्षक के बीच मनुष्य की विभिन्न भावनाओं का परिचय दिया है। मानव के इस स्वरुप का, उसकी भावनाओं का विश्लेषण 'नवीन' ने अपनी इस कविता में प्रस्तुत किया है। वर्णनात्मक पद्धति पर विवेचन प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा है -
'क्या है स्त्रोत ज्ञान का ? पूछा यों जब मानव ने अपने से, तो आई ध्वनि की ज्ञान है केवल इन्द्रियों के कैंपन से बोल उठा भौतिक विज्ञानी हैं इन्द्रियाँ ज्ञान की साधन, इसके बिना कहो कैसे हो मानव का यह ज्ञानाराधन।'
कला-पक्ष- भाषा की दृष्टि से 'नवीन' की कविताओं की भाषा सरल, सुबोध, बड़ी बोली है। भाषा में नित्यप्रति के व्यवहार में आने वाले उर्दू शब्दों का भी खुलकर उन्होंने प्रयोग किया है। उनकी इस प्रकार की भाषा का एक उदाहरण देखिए-
'माँ ने किया पुकार बढ़ा तू चढ़ा हुआ कुरवान । हमने देखा तुझे टहलते सिकचों के दरम्यान ।।'
इन पंक्तियों में 'कुरंवान', 'सिकचों' और 'दरम्यान' का प्रयोग उनकी भाषा सम्बन्धी उदारता का ही द्योतक है। जहाँ विवेचन पक्ष प्रवल है वहाँ भाषा भी संस्कृतगर्भित हो उठी है। 'रहस्य-उद्घाटन' की कुछ पंक्तियों को देखिए-
'मनुज कर रहा है घोषित यों और, नहीं हूँ भूत संग में। मैं हूँ सांग उपकरण-संयुत, पर फिर भी हूँ नित अनंग में !! इसी नित्य प्राप्तव्य ध्येय की ओर जा रहा है यह लघु जन । यह रहस्य-उद्घाटन रत-मन, पंख हीन यह, यह संश्लय तन ।।'
उनकी भाषा भाव के अनुरुप रही है, इसलिए उसमें एकरुपता नहीं है। अलंकारों की दृष्टि से उनकी कविताओं में स्वाभाविकता की प्रधानता है। अनुप्रास, रुपक, मूर्तविधान आदि भी प्रसंग के अनुसार प्रयोग में आए हैं, किन्तु उनके प्रयोग के लिए कवि को प्रयत्न नहीं करना पड़ा है। उनकी कृतियों में कलाकारिता का प्रयास नहीं, हृदयगत भावनाओं की शुद्ध अभिव्यक्ति है।
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